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________________ ६४ तत्त्वार्थ सूत्र उस (अवधिज्ञान द्वारा जानने योग्य पदार्थों का अनन्तवाँ भाग मनः पर्यायज्ञान जानता है । केवलज्ञान समस्त द्रव्यों की समस्त पर्यायों को जानता है । विवेचन - अवधिज्ञान का उपयोग क्षेत्र अर्थात् जानने आदि की क्षमता का विस्तृत विवेचन २१ से २६ वें सूत्र के विवेचन में किया जा चुका है, तथा वहीं मनःपर्यायज्ञान के बारे में भी स्पष्टीकरण हो चुका है । यहाँ २८ वां सूत्र सर्वावधि अवधिज्ञान की अपेक्षा से हैं । उसके द्वारा जाने गये रूपी पदार्थ के अनन्तवें भाग को मनः पर्यायज्ञान जानता है । केवलज्ञान प्रत्येक तथा सभी द्रव्यों की प्रत्येक तथा समस्त पर्यायों को युगपत् जानता है । यह त्रिलोक एवं त्रिकालवती सभी पदार्थों को जानता है, लोकालोक प्रकाशक है । तीनों लोक और तीनों कालों के सभी द्रव्य और पर्याय इसके हस्तामलकवत हैं । 1 आगम वचन जे गाणी अत्थे गतिया ते अत्थेगतिया दुणाणी, अत्थेगतिया तिणाणी, अत्थे गतिया चउणाणी, अत्थेगतिया एगणाणी । - जीवाभि. प्रतिपत्ति १, सूत्र ४१ (ज्ञानियों में किसी के दो ज्ञान होते हैं, किसी के तीन ज्ञान, किसी के चार ज्ञान और किसी के एक ज्ञान होता है ।) आत्मा में एक साथ कितने ज्ञान संभव है एकादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्नाचतुर्भ्यः |३१| एक जीव में एक को आदि लेकर विभाग किये हुए (भाज्यानि) एक साथ चार ज्ञान तक हो सकते हैं । विवेचन प्रस्तुत सूत्र का भाव यह है कि एक आत्मा में एक साथ चार ज्ञान तक हो सकते हैं, पाँचो ज्ञान किसी को भी एक साथ नहीं हो सकते यदि दो ज्ञान हों तो मतिश्रुत, तीन हो तो मति, श्रुत और अवधि, और चार हों तो मति, श्रुत, अवधि और मनः पर्याय - यह चार ज्ञान तक एक साथ एक जीव में रह सकते हैं । किन्तु केवलज्ञान अकेला ही रहता है । Jain Education International - केवलज्ञान वस्तुतः आत्मा का सम्पूर्ण ज्ञान है और यह चारों ज्ञान इस सम्पूर्ण के अंशमात्र हैं । भाव यह है कि केवलज्ञान में यह चारों ज्ञान For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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