SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय १ : मोक्षमार्ग ६३ तीर्थंकर भगवान द्वारा कथित गणिपिटक में सभी द्रव्यों और पर्यायों का सूक्ष्मातिसूक्ष्म विवेचन है तो उसके पाठी श्रुतकेवली के लिए भी समस्त द्रव्य और उनके समस्त पर्याय प्रत्यक्ष जैसे ही हो जाते हैं । इस अपेक्षा से यह कथन युक्तिसंगत हैं । फिर जिस मनुष्य को गणिपिटक का जितना अंश उपलब्ध हुआ है और जितनाउसने ग्रहण किया है, इस अपेक्षा से उतने ही अंश में वह भी द्रव्य और उनके पर्यायों को जानता है । __ अतः सामान्य श्रुतज्ञानियों की अपेक्षा सूत्र का कथन संगत है । आगम वचन - ओहिनाणी जहन्नेणं अणंताई रूविदव्वाइं जाणइ, पासइ । उक्कोसेणं सव्वाइं रूविदव्वाइं जाणइ, पासइ - नन्दी सूत्र, सूत्र १६ सव्वत्थोवा मणपज्जवणाण पजवा ओहिणाण पज्जवा अणंतगुणा.. - भगवती, श. ८, उ. २, सूत्र ११३ सव्वदव्व परिणामभाव विण्णत्तिक रणमणंतं, सासयमप्पडिवाई एगविहं के वलणाणं. । - नन्दीसूत्र सूत्र २२ (अवधिज्ञानी जघन्यतः अनन्त रूपी द्रव्यो को जानता, देखता है । उत्कृष्ट रूप से सभी रूपी द्रव्यो को जानता, देखता है । मनःपर्यवज्ञान की पर्यायें सबसे कम होती है; किन्तु अवधिज्ञान की पर्यायें उससे अनन्तगुणी होती हैं । - केवलज्ञान सर्व द्रव्यों के परिणाम और उनके भावों को बतलाने का कारण हैं, अन्त हैं, शाश्वत (निरन्तर रहता) है, अप्रतिपाती है । (यह उपलब्ध होने के बाद जाता नहीं ); अतः केवलज्ञान एक प्रकार का होता अवधि, मनःपर्यव और केवलज्ञान के ग्राह्य विषय - रूपिष्ववधे : । २८। तदनन्तभागे मनः पर्यायस्य । २९ । सर्वद्रव्यपर्यायेषु के वलस्य ।३०। अवधिज्ञान रूपीपदार्थों को जानता है । . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy