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________________ प्रकाशक की ओर से भगवान महावीर ने फरमाया है - प्राणी किससे घबराता है ? - दु:ख से । दु:ख किसने किया ?- अज्ञान और मोह के वश स्वयं प्राणी ने । उस दु:ख से छुटकारा कैसे मिले ? ' सम्यगदर्शन-ज्ञान और चारित्र से । स्थानांग सम्यगदर्शन-ज्ञान -चारित्र की आराधना कैसे करे ? पहले इनका ज्ञान प्राप्त करें। फिर इन पर श्रध्दा करे । श्रध्दापुर्वक आचरण करे । बस इसे ही कहते है, मोक्षमार्ग या रत्नत्रय । इस मोक्षमार्ग एवं रत्नत्रय का परिज्ञान कराने वाला एक सारपूर्ण ग्रन्थ है - तत्वार्थ सूत्र । तत्वार्थ सूत्र की दिगम्बर-श्वेताम्बर दोनों ही जैन परम्पराओं में विशेष महिमा है । यह एक ही ग्रन्थ जैन-दर्शन, धर्म, आचार आदि का परिचय देने वाला आगम दर्पण है । मोक्षमार्ग के इच्छुक प्रत्येक जिज्ञासु को तत्वार्थ सूत्र का परिशीलन करना चाहिए । - इसके सूत्र बहुत ही संक्षिप्त किन्तु सारपुर्ण है । जिन्हे समझने के लिए सरल व्याख्या या विवेचना की नितान्त आवश्यकता है। हमारे श्रध्देय उपाध्याय श्री केवल मुनिजी महाराज की बहुत समय से भावना थी कि तत्वार्थ सूत्र पर सरल विवेचन किया जाय और साथ ही जिज्ञासु पाठकों को यह भी बताया जाय कि इन सूत्रो व विवेचना का आधार प्राचीन आगम है । प्राचीन आगमो के आधर पर हि इनकी रचना हुई है, और उसी के अनुसार इसकी व्याख्या की गई है । आचार्य सम्राट श्री आत्मारामजी महाराज का 'तत्वार्थ सूत्र - जैनागम समन्वय' ग्रन्थ को आधार बनाकर इस सूत्र की प्रामाणिक सुन्दर व्याख्या की है। उपाध्याय श्री केवल मुनिजी का व्यक्तित्व बहु आयामी है । जैन श्रमणो में शायद वे ही एक ऐसे सन्त है जिन्होने प्राचीन अर्वाचीन जैन कथा साहित्य की कथा-विधा का सूत्र लेकर नये परिवेश में सर्वाधिक रोचक और विपुलं मात्रा में साहित्य प्रस्तुत किया है । मुनिश्री द्वारा लिखित कथा, कहानी एवं उपन्यासों की पुस्तके चालीस के लगभग है । और प्राय: सभी के दो-तीन संस्करण हो चुके है । ललित गद्य में भी मुनिश्री को 'जीने की कला', 'दिव्य आलोक' आदि पुस्तके भी काफी लोकप्रिय हुई है। कहानी, उपन्यास, काव्य लेखन के बाद अब आपश्री ने तत्वार्थसूत्र जैसे जैनदर्शन के हृदय ग्रन्थ को उद्घाटित कर अपनी गंभीर अध्ययन-शीलता एवं बहुश्रूतता का स्पष्ट लाभ समाज को दिया है । यह ग्रन्थ मुनिश्री की प्रगाढ विद्वत्ता और आगमो के गहन ज्ञान व अक्षुण्ण श्रध्दा का अमर किर्ति स्तम्भ बनकर रहेगा। इस द्वितीय संस्करण प्रकाशन मे श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावकसंघ औरंगाबाद , स्थानकवासी जैन श्रावकसंघ पुना, श्री हरकचंदजी पारख, विजयकांतजी कोठारी, खुबीलालजी सोळंकी, सौ.राजश्री सुनीलकुमारजी पारख, योगेशजी चौरडीया, श्री सुखलालजी जैन, जालना, (कुकुंलोळ) श्री उदयराजजी पारसमलजी दक ,हुन्सुर (म्हैसूर), श्री छगनलालजी प्रकाशचंदजी प्रवीणकुमारजी नगावत, नंजनगुड (म्हैसुर), सौ.अनीता कान्तिकुमारजी जैन(पोलखोल) सौ. कलाबाई कचरुलालजी ओस्तवाल, औरंगाबाद , अॅड. सुभाष सकलेचा, जालना इनका अमुल्य सहयोग रहा । इस द्वितीय संस्करण के प्रणेता स्व.मालव सिंहनी श्री कमलावती म.सा.की सुशिष्या प.पू. उपप्रवर्तिनी महासती श्री सत्यसाधनाजी म.सा. है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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