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________________ बन्ध तत्त्व (अ) सत्य मनोयोग सत्य सम्बन्धी मानसिक प्रवृत्ति । (ब) असत्य मनोयोग असत्य से संबंधित मानसिक प्रवृत्ति । सत्य-असत्य मिश्रित मन की प्रवृत्ति । ( स ) मिश्र मनोयोग (द) व्यवहार मनोयोग व्यवहार लक्ष्यी मानसिक वृत्त । प्रकार हैं (२) वचन की प्रवृत्ति को 'वचनयोग' कहा जाता है । इसके भी चार (२) सत्य वचनयोग ( ब ) असत्य वचनयोग (स) मिश्र वचनयोग और (द) व्यवहार वचनयोग । भेद ७ हैं । - (स) वैक्रिय काययोग है । इस शरीर की प्रवृत्ति । - (३) काययोग कायिक अथवा कायसंबंधी प्रवृत्ति । इसके उत्तर औदारिकशरीर की प्रवृत्ति । ऐसा शरीर (अ) औदारिक काययोग मनुष्यों और तिर्यंचों का होता है । (ब) औदारिकमिश्र काययोग औदारिक शरीर के साथ अन्य किसी शरीर की सन्धि के समय होने वाली कायिक प्रवृत्ति । यह शरीर देवों और नारकियों के होता - - Jain Education International - - (द) वैक्रियमिश्र काययोग शरीर की संधि के समय की कायिक प्रवृत्ति | (य) आहारक काययोग आहारक शरीर की प्रवृत्ति । यह शरीर १४ पूर्वधर संयमी मुनि ही अपने तपस्याजन्य लब्धिबल से निर्मित करते हैं। (र) आहारकमिश्र काययोग आहारक शरीर के साथ अन्य शरीर की संधि के समय होने वाली कांयिक प्रवृत्ति । - - ३५३ - - (ल) कार्मण काययोग कार्मणशरीर की प्रवृत्ति । जब जीव एक गति से दूसरी गति में जन्म लेने के लिए गमन करता है, तब कार्मण काययोग साथ होता है । वैक्रियशरीर से मिश्रित अन्य किसी इस प्रकार ५ मुख्य बन्धहेतुओं के उत्तर भेद (२५ मित्यात्व +१२ अविरति+२५ प्रमाद + २५ कषाय + १५योग ) = ९२ हैं । इन सभी बन्धहेतुओं में मिथ्यात्व सभी का मूल आधार है । अनादि काल से यही जीव को अनन्त संसार मं परिभ्रमण करा रहा है। मुक्ति प्राप्त करने के लिए सबसे पहले इसी को समाप्त करना अनिवार्य है । सूत्र में वर्णित पाँचो बन्धहेतु क्रम से हैं । यदि पहला मिथ्यात्व बन्धहेतु होगा तो शेष आगे के चारों बन्ध हेतु भी अवश्य होंगे । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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