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३०६ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ७ : सूत्र ३
अपरिग्रह महाव्रत
१ मनोज्ञ - अमनोज्ञ शब्द में समभाव
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आगम वचन
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रूप
गंध
रस
स्पर्श
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परसरीरसंवेगणी ।
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अपरिग्रह महाव्रत
१ श्रोत्रेन्द्रिय रागोपरति
२ चक्षु इन्द्रिय
३ घाणेन्द्रिय
४ रसनेन्द्रिय
५ स्पर्शनेन्द्रिय
संवेगणी कहा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहापरलोगसंवेगणी,
इहलो संवेगणी
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(संवेगणी कथा चार प्रकार की होती है, यथा (१) इहलोक - संवेगनी (२) परलोक - संवेगनी
(३) स्वशरीर - संवेगनी ( ४ ) परशरीर - संवेगनी
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णिव्वेगणी कहा चउविव्हा पण्णत्ता, तं जहाइहलोगे दुचिन्ना कम्मा इहलोगे - दुहफलविवागसंजुत्ता भवंति 191 इहलोगे दुचिन्ना कम्मा परलोगे-, दुहफलविवागसंजुत्ता भवंति |२| परलोगे दुचिन्ना कम्मा इहलोगे - दुहफलविवागसंजुत्ता भवंति | ३ | परलोगे दुचिन्ना कम्मा परलोगेदुहफलविवागसंजुत्ता भवंति ४ ।
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आतसरीरसंवेगणी,
स्थानांग ४ । २
निर्वेदी कथा के चार प्रकार हैं, जैसे
(१) इस लोक में किये हुए बुरे आचरित कर्म इसी लोक में बुरा फल देने वाले बनते है ।
(२) इस लोक में किये हुए अशुभकर्म परलोक में दुखद फल देते हैं। (३) परलोक में (दुश्चीर्ण) बुरे कर्म परलोक में दुखदायी बनते हैं । (४) परलोक में किये हुए बुरे कर्म परलोक में दुखदायी बनते है । विशेष – इसी प्रकार संवेगनी कथा के अन्तर्गत सुचीर्ण (सुचिण्ण्णा) शुभकर्मों की चतुर्भगी है ।
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