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तत्त्वार्थ सूत्र
आगम वचन
नाणं च दंसणं चेव, चरित्तं च तवो तहा ।
एयं मग्गमणुप्पत्ता, जीवा गच्छन्ति सोग्गई ॥ ( - उत्तरा. २८/३) (ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप के मार्ग का अनुसरण करने वाले जीव उत्कृष्ट सुगति (मोक्ष) को प्राप्त करते हैं ।) मोक्ष के साधन
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सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्गः । १ ।
अर्थ - सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र - ये तीनों सम्मिलित रूप से मुक्ति प्राप्त करने के मार्ग (साधन) हैं ।
विवेचन - तत्त्वार्थसूत्र ग्रन्थ के प्रस्तुत प्रथम सूत्र में मोक्ष प्राप्ति के साधन बताये गये हैं । यह साधन हैं सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्ंचारित्र । यह तीनों सम्मिलित रूप से अथवा मिलकर मोक्षमार्ग किंवा मोक्ष प्राप्ति का साधन बनते हैं ।
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आगम में, जैसा कि उक्त उद्धरण से स्पष्ट हैं, तप की पृथक रूप से गणना करके मोक्ष-प्राप्ति के चार साधन कहे गये हैं । किन्तु प्रस्तुत सूत्र में तप का अन्तर्भाव चारित्र में ही कर लिया गया है । जैसाकि 'पंचाचार' में तपाचार को भी आचार अथवा चारित्र का ही एक भेद माना है ।
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तीनों
प्रस्तुत सन्दर्भ में विशेष रूप से ध्यान रखने योग्य बात है कि इन सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र में से पृथक्-पृथक् कोई भी एक अथवा दो मोक्ष की प्राप्ति नहीं करा सकते, तीनों का साहचर्य, अति आवश्यक है, तीनों ही मिलकर मोक्षमार्ग हैं ।
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ऐसा ही प्रस्तुत आगम गाथा से ध्वनित होता है नादंसणिस्स नाणं, नाणेण विना व हुंति चरणगुणा । अगुणिस्स नत्थि मोक्खो, नत्थि अमोक्खस्स निव्वाणं ॥ ( - उत्तरा २८ / ३० )
(सम्यग्दर्शन रहित जीव को सम्यग्ज्ञान नहीं होता, (सम्यक् ) ज्ञान के बिना (सम्यक्चारित्र) चारित्रगुण नहीं होता, अगुणी ( चारित्रगुण से विहीन) जीव को (सर्वकर्मक्षय रूप) मोक्ष नहीं होता और मोक्ष हुए बिना ( शाश्वत सुख रूप) निर्वाण नहीं होता ।
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इस विषय को आगे और स्पष्ट किया गया हैंनाणेण जाणइ भावे, दंसणेण य सद्दहे ।
चरित्तेण निगिण्हाइ, तवेण परिसुज्झई ॥ ( - उत्तरा २८/३५ )
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