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________________ अध्याय १ : मोक्षमार्ग ५ - आत्मा ज्ञान (सम्यग्ज्ञान) से जीवादि पदार्थों (द्रव्य, गुण, पर्यायों, तत्वों) को जानता हैं, दर्शन (सम्यग्दर्शन) से उन पर यथार्थ विश्वास/श्रद्धा करता हैं, चारित्र (सम्यक्चारित्र) से उनका (नवीन आते हुए और आत्मा के साथ बँधते हुए कर्मों का संवर) निरोध करता हैं तथा तप से परिशुद्ध (पूर्वसंचित कर्मपुद्गलों की आत्यन्तिक निर्जरा-क्षय) होता है । उपर्युक्त गाथाओं के प्रकाश में सहज ही यह विश्वास दृढ़ होता है कि सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान सम्यक्चारित्र-तीनों ही पृथक्-पृथक् रूप से मोक्षप्राप्ति के साधन नहीं बन पाते । साधन बनना तो दूर की बात है, यही तीनों (दर्शन, ज्ञान और चारित्र) सम्यक् विशेषण से विशेषित होने योग्य भी नहीं बन पाते । इनको सम्मिलित रूप से रखने के लिए ही आचार्य ने 'सम्यक' एक ही विशेषण 'दर्शन-ज्ञानचारित्र' तीनों विशेष्यों के लिए दिया है और 'मोक्षमार्गः' इस प्रकार सूत्र की रचना एकवचनान्त की है । अभिप्राय स्पष्ट है कि यह तीनों सम्मिलित रूप से मोक्ष के साधन हैं। प्राप्तिक्रम इस विवेचन के उपरान्त सहज ही यह जिज्ञासा उठती है कि जब यह तीनों ही सम्मिलित रूप से मोक्ष के साधन है तो जीव को इनकी प्राप्ति एक साथ ही होती है अथवा एक के बाद दूसरे की ? अर्थात् सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र-सहभावी हैं अथवा क्रमभावी ? यदि यह तीनों क्रमभावी हैं तो इनका क्रम क्या है ? इस विषय मे दो प्रकार के मत हैं - (१) पहले दर्शन सम्यक् होता है, बाद में ज्ञान तथा तदुपरान्त चारित्र सम्यक् होता है । (२) दर्शन और ज्ञान तो युगपत् (एक साथ) सम्यक् होते हैं किन्तु चारित्र बाद में सम्यक् होता है। यानी सम्यग्दर्शन-ज्ञान तो सहभावी हैं और चारित्र क्रमभावी हैं । इस विषय में उत्तराध्ययन सूत्र की निम्न गाथा द्रष्टव्य है - नत्थि चरित्तं सम्मत्तविहणं दंसणे उ भइयव्वं - सम्मत्त-चरित्ताई जुगवं पुव्वं व सम्मत्तं ॥ (२९/२६) सम्यक्त्व (सम्यग्दर्शन) के बिना चारित्र (सम्यक्चारित्र) नहीं होता किन्तु सम्यक्चारित्र के बिना सम्यग्दर्शन हो सकता है । सम्यक्त्व और चारित्र एक साथ (युगपत्) भी होते हैं । किन्तु चारित्र से सम्यक्त्व पहले होताह। . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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