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________________ २३६ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ५ : सूत्र १७-२२ कि ध्वनि आकाश का गुण नहीं है, अपितु पुद्गल द्रव्य के दो परमाणुओं/ स्कंधों (atoms of matter and elements) से उत्पन्न होती है । पुद्गल द्रव्य के कार्य - पुद्गलास्तिकाय के कार्य सुख, दुःख, जीवन, मरण, शरीर, मन, वचन और प्राणापान (उच्छ्वास-निःश्वास) हैं, इन सबमें पुद्गल द्रव्य निमित्त बनता है । शरीर तो स्पष्ट ही पौद्गलिक है, औदारिक वर्गणाओं से निर्मित्त है । इसी प्रकार वचन (भाषा) को वैज्ञानिक भी पौद्गलिक सिध्द कर चुके हैं और इसी प्रकार मन (mind) को भी । . उच्छ्वास और निःश्वास .ये दोनों पौद्गलिक (of matler) हैं । विज्ञान ने भी पुद्गल (matter) ही एक दशा गैस (gas) स्वीकार की है जो वायु रुप होती है । श्वासोच्छ्वास वायु को आधुनिक वैज्ञानिक शब्दावली में oxygen and nitrogen कहा जाता है। सुख और दुःख जो जीव अनुभव करता है, उनका अन्तरंग कारण सातावेदनीय-असातावेदनीय कर्म है, जो स्वयं पौदगलिक है । फिर कोमल स्पर्श, सुगन्धित द्रव्य मन को सुख देते हैं, गर्मियों में शीतल वायु आदि भी सुखद होते हैं । इसी प्रकार दुर्गन्ध, रुक्ष और कठोर स्पर्श, तीखे कांटे आदि दुःख की अनुभूति कराते हैं। ये सभी स्पष्टतः पौद्गलिक हैं। मृत्यु के कारण भी अनेक पुद्गल; जैसे-पत्थर आदि की सांघातिक चोट, बन्दूक की गोली, तीक्ष्ण शस्त्र, तलवार, छुरी आदि स्पष्ट ही स्थूल और पौद्गलिक हैं । जीव के कार्य - जीव एक-दूसरे के सहायक बनते हैं, संतजन उपदेश आदि देकर गृहस्थों का उपकार करते हैं । इसी प्रकार मालिक सेवकों को वेतन देकर और नौकर अपने स्वामियों की सेवा करके उपकार करते हैं संसार का प्रत्येक प्राणि एक-दूसरे के उपकार/ सहयोग पर आश्रित है । मानव-जीवन का समस्त पारिवारिक, सामाजिक, जातीय और राज्य, राष्ट्र संबंधी ढांचा तो, परस्पर के सहयोग/उपकार पर ही खड़ा है । काल के उपकार सूत्र में काल द्रव्य के चार उपकार बताये हैं-१.,वर्तना,२. परिणाम, ३.क्रिया और ४. परत्व-अपरत्तव । प्रस्तुत सूत्र में जो काल के उपकार गिनाये गये हैं, वे काल को स्वतंत्र द्रव्य स्वीकार करके गिनाये गये प्रतीत होते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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