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________________ तत्त्वार्थ सूत्र प्रथम अध्याय मोक्षमार्ग (SALVATION PATH) उपोद्घात संसार के प्रत्येक प्राणधारी का एकमात्र लक्ष्य है सुख । सभी प्राणी, जीव, भूत एवं सत्त्व सुख-साता चाहते हैं, दुःख उनको अप्रिय है । आगम की भाषा मेंसव्वे पाणा, सव्वे जीवा, सव्वे भूया, सव्वे सत्ता... सुहसाया, दुक्खपडिकूला। किन्तु सुख की धारणां सभी प्राणियों में अलग-अलग होती है । कोई किसी वस्तु में सुख मानता है तो किसी को अन्य वस्तु में सुख की अनुभूति होती है । प्रत्येक की रुचि-प्रवृत्ति भिन्न है । इस दृष्टि से प्राणियों को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है - प्रथम भवाभिनन्दी और दूसरे मोक्षाभिनन्दी । भवाभिनन्दी जीव भौतिक सुखों की इच्छा करते हैं, उनकी प्राप्ति में ही सुख मानते हैं और उनका वियोग होते ही दुःखी हो जाते हैं । सभी अविकसित प्राणी इसी कोटि के हैं । किन्तु मानव जो विकसित प्राणी हैं, उनमें से अधिकांश भी इसी कोटि के हैं, वे भी भौतिक सुखों की ओर लायायित रहते हैं । भौतिक सुखों के अनेक प्रकार हैं । किन्तु इन्हें सुविधा की दृष्टि से नौ वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता हैं। (१) ज्ञानानन्द - ज्ञान से अभिप्राय यहाँ भौतिक ज्ञान है । बहुत से वैज्ञानिक नई-नई खोज शोध करने में ही आनन्द मानते हैं । कुछ लोग शक्ति प्राप्त करके दूसरों का अहित करते हैं और आनन्द मानते हैं । कुछ लोग नित नये घातक शस्त्र, संहारक सामग्री के आविष्कार में ही जीवन खपा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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