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________________ ( २० ) कारण और एक साथ संभाव्यता ४१५, चारित्र के प्रकार और लक्षण ४१८, संवर के ५७ भेद तालिका ४२१, बाह्यतपों के भेदोपभेद, लक्षण और स्वरूप ४२१, बाह्य तप की तालिका ४२६, आभ्यन्तर तप के भेद और लक्षण तथा स्वरूप ४२७, प्रायश्चित तप के प्रकार (उपभेद) ४२८, विनय तप के उपभेद ४२९, वैयावृत्त्य तप के भेदोपभेद ४३२, स्वाध्याय तप के उपभेद ४३२, धर्मकथा के चार प्रकार ४३३, व्युत्सर्ग तप के उपभेद ४३४, द्रव्य व्युत्सर्ग तप ४३४, भाव व्युत्सर्ग तप ४३५, ध्यान का लक्षण और उसका अधिकतम समय ४३६, ध्यान और ध्यान प्रवाह ४३७, ध्यान के चार भेद ४३८, प्रशस्त और अप्रशस्त ध्यान ४३८, आर्तध्यान के चार भेद और उनकी संभाव्यता ४३९, रौद्रध्यान के चार भेद और उसकी संभाव्यता ४४२,रौद्रध्यानी के लक्षण ४४२, धर्मध्यान के चार भेद और उसकी संभाव्यता ४४३, धर्म ध्यान के चार भेद और उसकी संभाव्यता ४४३, धर्म ध्यान के लक्षण, अवलम्बन और भावनाएँ ४४४-४४५, शुक्लध्यान स्वरूप, लक्षण, भेद और अधिकारी ४४६, 'पूर्वविद' शब्द का अभिप्राय ४४७, 'एकाश्रये' शब्द का अर्थ ४४७, शुक्लध्यान के चारों भेदों का स्वरूप ४४८, शुक्लध्यान के चार लिंग और चार अवलं बन ४४९, शुक्लध्यान की चार भावनाएं ४५०, आभ्यन्तर तप की तालिका ४५१, ध्यान तप की तालिका ४५२-४५३, कर्म निर्जरा का क्रम ४५४, श्रमणों के भेद और भिन्नता विषयक विकल्प ४५६, निर्ग्रन्थ शब्द का निर्वचन ४५६, निर्ग्रन्थों की विशेषताएँ ४५७, स्थान (संयम स्थान) ४६० । अध्याय १० : मोक्ष ४६१-४७४ उपोद्घात ४६१, केवलज्ञान-दर्शन उपलब्धि की प्रक्रिया ४६२, मोक्ष का स्वरूप ४६३, केवली समुद्घात-कारण, स्वरूप और प्रक्रिया ४६५, मुक्ताजीवों के भावों का अभाव और सद्भाव ४६६, मुक्त जीव का ऊर्ध्वगमन और गति क्रिया के हेतु ४६८, लोकान्त का अभिप्राय ४६८, ऊर्ध्वगमन के दृष्टान्त ४६९, सिद्धों के विकल्प अथवा भेद ४७०, प्रति समय सिद्ध होने वाले जीवों की संख्या ४७३ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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