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________________ ( १९ ) अन्तिम समय की आराधना ३२४, सम्यग्दर्शन के अतिचार ३२५, अहिंसा आदि पाँच अणुव्रतों के अतिचार ३२८, ब्रह्मचर्याणुव्रत के अति चारों का विशेष विवेचन ३३१, दिगव्रत, देशव्रत, अनर्थदण्ड व्रत के अतिचार ३३६, सामायिक, पौषधोपवास, उपभोग-परिभोग, अतिथि संविभाग व्रत के अतिचार ३३८, अणुव्रत-गुणव्रत-शिक्षाव्रतों के अतिचारों की तालिका ३४२-३४३,संलेखनाव्रत के अतिचार ३४४, दान का लक्षण ३४५, दान के दस भेद ३४६, दान की विशेषता ३४७। अध्याय ८ : बन्ध तत्त्व ३४९-४०० उपोद्घात ३४९, बंधहेतु ३४९, बन्ध हेतु की अन्य परम्पराएँ ३५०, मिथ्यात्व २५ प्रकार का ३५०, अविरति १२ प्रकार की ३५१, प्रमाद के १५ प्रकार ३५२, कषाय के २५ भेद ३५२, योग के १५ भेद ३५२, बंध का लक्षण ३५४, बंध के ४ भेद ३५५, कर्म की,११ अवस्थाएँ ३५६, तालिका ३६१, मूल और उत्तर कर्मकृतियाँ, कर्म प्रकृतियों के नाम, लक्षण, स्वभाव, भेद ३६२, तालिका ३६५, ज्ञानावरणीय कर्म की उत्तर प्रकृतियाँ ३६४, दर्शनावरणीय कर्म की उत्तर प्रकृतियाँ ३६६, वेदनीय कर्म की उत्तरप्रकृतियाँ ३६८, मोहनीय कर्म की उत्तर प्रकृतियाँ ३६९, तालिका (मोहनीय कर्म) २७३, आयुष्य कर्म की उत्तरप्रकृतियाँ ३७४, नामकर्म की उत्तरप्रकृतियाँ ३७५, नाम कर्म की तालिका ३८७-२८९, गोत्र कर्म के भदे ३९०, अन्तराय कर्म की उत्तर प्रकृतियाँ ३९२, आठों कर्मों की स्थिति ३९३, तालिका ३९५, अनुभाव बंध ३९६, प्रदेशबंध ३९६, पुण्य और पाप प्रकृतियाँ ३९९॥ अध्याय ९ : संवर तथा निर्जरा ४०१-४६० उपोद्घात ४०१, संवर-निर्जरा के लक्षण और संवर के उपाय तथा भेद ४०२, गुप्ति का लक्षण ४०३, समितियों का नामोल्लेख और लक्षण ४०४, धर्म के प्रकार ४०५, वैराग्य भावनाएँ उनके लक्षण, भेद और स्वरूप ४०८, परीषहों के नाम और सहने के कारण ४११, परीषहों के अधिकारी, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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