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________________ ( १८ ) अध्याय ६: तत्त्व विचारणा २५५-२९२ योग के भेद २५५, आस्रव का लक्षण २५६, आस्रव के दो भेद २५७, नौ प्रकार के पुण्य २५७, अठराह पापस्थानक २५८, क्रिया की अपेक्षा आस्रव के भेद २५८, सांपरायिक आस्रव के भेद २६०, पच्चीस क्रियाएँ २६१, तेरह क्रियाएँ २६२, क्रियाओं की तालिका २६४, आस्रव में विशेषता के कारण २६५, अधिकरण के दो प्रकार २६७, जीवाधिकरण के भेद २६७, अजीवाधिकरण के भेद २६९, ज्ञानावरणीय और दर्शनवरणीय कर्म के आस्रव द्वार (बंध हेतु) २७१, असातावेदनीय कर्म के आस्रवद्वार २७३, सातावेदनीय कर्म के आस्रवद्वार २७४, दर्शनमोहनीय कर्म के आस्रवद्वार २७६, चारित्रमोहनीय (कषाय और नोकषाय मोहनीय) के आस्रवद्वार २७७, नरकायु बंध के कारण २७८, तिर्यंचायु बंध के कारण २८०, मनुष्यायु बंध के कारण २८१, चारों आयु ओं के समान्य बंध हेतु २८१, देवायुबंध के कारण २८२, शुभ और अशुभनाम कर्म के बंध हेतु २८४, तीर्थंकर प्रकृति के बंधहेतु २८६, उच्च और नीच गोत्र कर्म के आस्रवद्वार २८८, अन्तराय कर्म के आस्रव हेतु २८६, सात कर्मों का सतत बंध-प्रत्येक संसारी जीव के २९०, आयु बंध का अभिप्राय २९०, आयुबंध का समय २९१ ।। अध्याय ७: आचार-(विरति-संवर) २९३-३४८ उपोद्घात २९३, व्रतों के लक्षण और भेद २९३, व्रतों की स्थिरता के उपायभावनाएँ २९५, अहिंसाव्रत की ५ भावनाएँ २९७, सत्यव्रत की ५ भावनाएँ २९९, अस्तेय (अचौर्य) व्रत की ५ भावनाएँ २९९, ब्रह्मव्रत की ५ भावनाएँ ३०१, अपरिग्रहव्रत की पाँच भावनाएँ ३०२, क्या पाँच व्रतों की २५ भावनाएँ श्रमण के लिए ही हैं, या श्रावक (अनुव्रती साधक) के लिए भी ३०३, भावनाओं की तालिकाएँ ३०४-३०५, पापविरति की अन्य भवनाएँ ३०७, योग भावनाएँ एवं शरीर संसार स्वरूप चिन्तन ३०८, हिंसा के लक्षण ३१०, असत्य आदि चार व्रतों के लक्षण ३१३, व्रती की अनिवार्य योग्यता ३१५, व्रती के भेद आगारी, अनगारी, ३१६, श्रावक के गुणव्रत और शिक्षाव्रत ३१८, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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