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ऊर्ध्वलोक-देवनिकाय २१३ (भगवन् ! तारा विमानों के देवों की स्थिति कितनी है ?
गौतम ! जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त कम पल्योपम का आठवाँ भाग है और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त कम पल्योपम का चतुर्थभाग (१/४) भाग है।) ज्योतिष्क देवों की आयु (स्थिति)
ज्योतिष्काणामधकिम् । ४८ । ग्रहाणामेकम् ।४९। नक्षत्राणामर्धम् ।५०। तारकाणां चतुर्भागः ५१। जधन्यात्वष्टभागः । ५२। . चतुर्भागः शेषाणां । ५३। ज्योतिष्क देव (सूर्य-चन्द्र) की उत्कृष्ट आयु कुछ अधिक एक पल्योपम
ग्रहों (के देवों) की उत्कृष्ट आयु एक पल्योपम होती है । नक्षत्रों (के देवों) की उत्कृष्ट आयु आधा (१/२) पल्योपम है।
तारों (के देवों) की उत्कृष्ट आयु चौथाई (१/४) पल्योपम है । . जघन्य स्थिति (सूर्य चन्द्र की ) पल्योपम का आठवाँ भाग (१/८)
_ तारों को छोड़कर शेष ज्योतिष्क निकाय के देवों (ग्रहों और नक्षत्रों) की जघन्य आयु पल्योपम का चौथाई भाग है ।
विवेचन - आगमोक्त उद्धरण में जो ज्योतिष्क देवों की स्थिति पल्योपम से एक लाख वर्ष अधिक बताई है तथा सूत्र में साधिक (कुछ अधिक) पल्योपम कही है, उसका स्पष्टीकरण यह है -
चन्द्रमा की स्थिति एक लाख वर्ष अधिक और सूर्य की एक हजार वर्ष अधिक होती है। ज्योतिष्क देवियों की स्थिति उत्कृष्ट आधा पल्य और और जघन्य पचास हजार वर्ष होती है ।
प्रज्ञापना वृत्ति पत्राकं १७५ में यह उल्लेख प्राप्त होता हैचन्द्र विमान में चन्द्रमा उत्पन्न होता है, इसलिए वह चन्द्रविमान
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