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________________ २१२ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ४ : सूत्र ४३-४७ चुकी है । अतः यहाँ पुनरावृत्ति नहीं की गई है। यहाँ तो पहली नरकभूमि के नारकियों की जघन्य आयु दस हजार वर्ष बताकर यह सूचन कर दिया गया है कि दूसरे, तीसरे, चौथे, पाँचवें और छठे नरक के नारकियों की जो उत्कृष्ट आयु है, वही क्रमशः तीसरे, चौथे, पाँचवे, छठवें और सातवें नरक की जघन्य आयु है । इसी प्रकार भवनवासी देवों की उत्कृष्ट आयु स्थिति इसी अध्याय के सूत्र ३०,३१,३२ में बताई गई जा चुकी है । प्रस्तुत सूत्र ४५ में तो उनकी जघन्य आयु दस हजार वर्ष की होती है - यह सूचन किया गया है । किन्तु सूत्र ४६ में व्यंतर देवों की जघन्य आयु दस हजार वर्ष होती है यह बताकर उत्कृष्ट आयु एक पल्योपम प्रमाण है, यह भी बता दिया गया है । यानी इन दोनों सूत्रों में व्यंतर देवों की जघन्य और उत्कृष्ट दोनों प्रकार की आयु स्थिति बता दी गई है । आगम वचन जोईसियाणं भंते! देवाणं ?.... जहण्णेणं पलिओवम् अट्ठ भागो, उक्कोसेणं पलिओवमं वास सतसहस्समब्भहियं। - प्रज्ञापना, स्थिति पद सू. ३९५ (ज्योतिष्क देवों की आयु जघन्य स्थिति पल्योपम का आठवाँ भाग है और उत्कृष्ट स्थिति एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम है ।) गह विमाणे देवाणं पुच्छा - गोयमा ! जहण्णेणं चउभाग पलिओवमं, उक्कासेणं पलिओवमं। . - प्रज्ञापना, स्थिति पद, सू. ४०१ (भगवन् ! ग्रह विमान में देवों की स्थिति कितनी है ? जघन्य चतुर्थभाग १/४ पल्योपम और उत्कृष्ट एक पल्योपम।) णक्खत्तविमाणे देवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णं चउभाग पलिओवं उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं । (भगवन् ! नक्षत्र विमान में देवों की स्थिति कितनी होती है ? गौतम ! जघन्य चतुर्थभाग १/४ पल्योपम और उत्कृष्ट १/२ आधा पल्योपम ।) तारा विमाणे देवाणं पुच्छा । गोयमा ! जहण्णेणं अट्ठभागपलिओवमं अंतोमुहूत्तूणं, उक्कोसेणं. चऊभाग पलिओवमं अंतोमुहूतूणं । - प्रज्ञापना, स्थिति पद, सूत्र ४०५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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