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________________ अधोलोक तथा मध्यलोक १५५ कम्मभूमगा पण्णरसविहा पण्णत्ता, तं जहापंचहिं भरहेहिं पंचहिं एरवएहिं पंचहिं महाविदेहे हिं .. से किं तं अकम्मभूमगा ? अकम्मभूमगा तीसइविहा पण्णत्ता, तं जहा पंचहिं हेमवए हिं पंचहिं हरिवासेहिं, पंचहिं रम्मगवासेहिं, पंचहिं एरण्णवासेहिं, पंचहि देवकुरुहिं, पंचहिं उत्तरकुरुहिं । से तं अकम्मभूमगा। - प्रज्ञापना पद १, मनुष्याधिकारी, सूत्र ३२ (कर्मभूमि कौन सी हैं ? कर्मभूमि पन्द्रह कही गई हैं । अढाईद्वीप - के ५ भरत, ५ ऐवत और ५ महाविदेह । अकर्मभूमि अथवा भोगभूमि कौन-सी हैं ? भोगभूमि ३० होती है - ५ हैमवत, ५ हरिवर्ष, ५ रम्यक्वर्ष, ५ हैरण्यवत, ५ देवकुरु और ५ उत्तरकुरु । यह सब भोगभूमियाँ हैं । पलिओवमाउ तिन्नि य, उक्कोसेणं वियाहिया । आउट्ठिई मयुयाणं, अन्तोमुहुत्त जहनिया || __ - उत्तरा ३६/१९८ (मनुष्यों की उत्कृष्ट आयु ३ पल्योपम और जघन्य आयु अन्तर्मुहूर्त होती है. । पलिओवमाइं तिण्णि उ उक्कोसेण वियाहिया । आउठिई थलयराणां अन्तोमुहुत्तं जहनिया ॥ - उत्तरा. ३६/१८३ गब्भवक्कं तिय चउप्पय-थलयरपंचेन्द्रिय तिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ? जहणेणं अन्तोमुहुत्तं उक्कोसेणं. तिण्णि पलिओवमाई - प्रज्ञापना, स्थिति पद ४, तिर्यगधिकार (गर्भज स्थलचर (तिर्यंचो) की उत्कृष्ट आयु ३ पल्योपम और जघन्य आयु अन्तर्मुहूर्त होती है ।) मनुष्य एवं मनुष्य लोक वर्णन - द्विर्धातकीखण्डे 1१२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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