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________________ अधोलोक तथा मध्यलोक १५३ मेरुपर्वत तीनों लोकों के विभाजन का आधार हैं, पृथ्वी तल से ९०० योजन नीचे तक मध्यलोक है और फिर १०० योजन नीचे अधोलोक को स्पर्श करता है तथा इसकी चूलिका के ऊपर ऊर्ध्वलोक शुरू हो जाता है। इसकी तिरछी दिशा में असंख्यातयोजन तक मध्यलोक है । मेरुपर्वत के ३ काण्डक है । पहला काण्डक १ हजार योजन का पृथ्वी के अन्दर हैं, दूसरा काण्डक पृथ्वी तल से ६३ हजार योजन पृथ्वी के ऊपर है और तीसरा काण्डक, दूसरे काण्डक के ऊपर ३६ हजार योजन ऊँचा है। प्रथम काण्डक में शुद्धपृथ्वी, हीरा, पत्थर आदि हैं । दूसरे काण्डक में चाँदी, सोना, अंकरत्न और स्फटिक है । तीसरे काण्डक में प्रायः सुवर्ण ही हैं । मेरुपर्वत पर भद्रशाल, नन्दन, सौमनस और पाण्डुक - यह ४ वन हैं । इन चार वनों से मेरु पर्वत चारों ओर से घिरा हुआ है । भद्रशाल वन मेरु पर्वत के मूल में हैं । नन्दनवन उससे ५०० योजन ऊपर चलकर हैं । उससे ६२।। हजार योजन ऊपर सौमनसवन है । सोमनस वन से ३६ हजार योजन ऊपर पाण्डुकवन है । __ मेरु का शिखर अथवा चूलिका ४० योजन प्रमाण है । पाण्डुल वन इसी के चारों ओर हैं । दिशाओं का निर्णय - लोक के ठीक मध्यभाग में आठ रुचक प्रदेश हैं । यह सदा अवस्थित रहते हैं । इन आठ रूचक प्रदेश से ही चार दिशाओं और चार विदिशाओं का निर्धारण होता है ) यह निश्चय दृष्टि (Naumenal point of view) है; किन्तु व्यवहार में दिशाओं का निर्धारण सूर्योदय से किया जाता है - यानी जिधर सूर्य का उदय होता है, वह पूर्व दिशा मानी जाती है और फिर इसके आधार पर अन्य दिशा-विदिशाओं का निर्धारण किया जाता जम्बूद्वीप वर्णन - जैसा कि सूत्र में बताया गया है कि हिमवान आदि ६ वर्षधर पर्वतों के कारण जम्बूद्वीप भरत ऐरवत आदि ७ क्षेत्रों में विभाजित हो गया है । यह एक लाख योजन का है । जम्बूद्वीप के चारों ओर, उसे घेरे हुए लवणोदधि समुद्र है । इसका विस्तार २ लाख योजन हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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