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१५२ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ३ : सूत्र ९-१०-११ जंबूद्वीप की स्थिति -
तन्मध्ये मेरुनाभिर्वृ त्तो योजनशतसहस्त्रविष्कम्भो जंबूद्वीपः ।९। तत्र भरतहैमवतहरिविदेहरम्यकहैरण्यवतैरावतवर्षाः क्षेत्राणि ।१०।
तद्विभाजिनः पूर्वापरायता हिमवन्महाहिमवन्निषधनीलरूक्मिशिखरिणो वर्षधरपर्वता : ।११। - उन सब (द्वीप-समुद्रों) के बीच में जंबूद्वीप है । इसकी लम्बाईचौड़ाई (व्यास) एक लाख योजन है । इसके मध्य में नाभि के समानगोलाकार मेरु पर्वत है । ___इस जम्बूद्वीप में भरतवर्ष, हैमवतवर्ष, हरिवर्ष, विदेह, रम्यकवर्ष, हैरण्यवतवर्ष तथा ऐवतवर्ष-यह सात क्षेत्र है ।
इन क्षेत्रों का विभाजन (परस्पर पृथक्) करने वाले छह वर्षधर पर्वत हैं - हिमवान, महाहिमवान, निषध, नील, रूक्मी और शिखरी । यह वर्षधर पर्वत पूर्व से पश्चिम तक फैले हुए है ।
विवेचन - प्रस्तुत सुत्र ९ से ११ तक जम्बूद्वीप की भौगोलिक स्थिति का वर्णन हुआ है ।
___जम्बूद्वीप, उन असंख्यात द्वीपों में सबसे छोटा है । यह चूडी के समान गोल (circular) है । इसका व्यास १ लाख योजन है । इसके मध्य में मेरुपर्वत
पूर्व पश्चिम में ही 'जीवा' के रूप में छह वर्षधर पर्वत हैं - हिमवान, महाहिमवान, निषध, नील, रुक्मी और शिखरी । इन पर्वतों के कारण जम्बूद्वीप भरतवर्ष, हैमवतवर्ष, हरिवर्ष, विदेहवर्ष, रम्यकवर्ष, हैरण्यवतवर्ष और ऐरवतवर्ष इन सात क्षेत्रों में विभाजित हो गया है ।
यद्यपि मूलसूत्र में तो जम्बूद्वीप, मेरूपर्वत तथा वर्ष (क्षेत्र) और वर्षधर पर्वतों का सामान्य वर्णन ही हैं; किन्तु आचार्य उमास्वाति ने स्वयं अपने भाष्य में इनका विशेष वर्णन किया है। उसके अनुसार इनका विशेष परिचय दिया जा रहा है ।
___ मेरुपर्वत - मेरुपर्वत एक लाख योजन ऊँचा है । वह ९९००० योजन पृथ्वी के ऊपर है और १०० योजन पृथ्वी के अन्दर । पृथ्वी के अन्दर वाले भाग की चौड़ाई सर्वत्र १००० योजन है ।
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