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________________ अधोलोक तथा मध्यलोक १३७ मोटाई १ लाख ८ हजार योजन, एक पाथडा । नरकावास ५ हैं और जघन्य आयु २२ सागर इनमें (७) महातमः प्रभा है इसलिए आंतरा नहीं है तथा उत्कृष्ट आयु ३३ सागर है । - (सातों नरकभूमियो में कुल नरकावासों की संख्या ८४ लाख घोर पापी जीव तीव्रातितीव्र वेदना भोगते हैं । नारकियों की शरीरसम्बन्धी विशेषताएँ नारकियो का वैक्रिय शरीर होता है । इनके मूल शरीर का परिमाण इस प्रकार है पहली नरक के नारको के शरीर का प्रमाण पौने आठ धनुष ६ अंगुल, दूसरे नरक के नारको का साढ़े पन्द्रह धनुष १२ अंगुल, तीसरे नरक में २११ / ४ ( सवा इक्कीस) धनुष, चौथे में ६२ १ / २ ( साढ़े बासठ ) धनुष पाँचवें में १२५ धनुष. छठवे में २५० धनुष और सातवें में ५०० धनुष प्रमाण का शरीर होता है । - यह उत्कृष्ट प्रमाण है और कम से कम शरीर का आकार अंगुल का असख्यातवां भाग हैं । I नारक जीव घोर दुःख से दुःखी होकर अपने शरीर की उत्तर वैक्रिय करते हैं तो मूल शरीर से दुगुने आकार तक का बना लते हैं । यद्यपि उनका यह प्रयास कष्टों से बचने के लिए होता है किन्तु उनका कष्ट और बढ़ जाता है । जिज्ञासा - यहाँ एक जिज्ञासा हो सकती है कि नरकभूमियाँ आकाश (आधार के बिना) में किस प्रकार टिकी हुई हैं ? Jain Education International समाधान इस प्रश्न का समाधान भगवती सूत्र शतक १, उद्देशक ६ में दिया गया है । वहाँ लोकस्थिति सम्बन्धी प्रश्न पूछने पर भगवान ने फरमाया है कि त्रस और स्थावर प्राणियों का आधार पृथ्वी, है, पृथ्वी का आधार घनोदधि है, घनोदधि घनवात पर प्रतिष्ठित हैं, घनवात तनुवात पर और तनुवात आकाश पर प्रतिष्ठित है तथा आकाश अपना आधार स्वयं ही है, इसे अन्य आधार की अपेक्षा नहीं है । इसे एक दृष्टान्त से समझाया गया है । एक मशक को हवा से भरकर फुला दिया जाय और उपर से उसका मुँह डोरी से बांध दिया जाय; फिर बीच के भाग को एक डोरी से कसकर बांध दिया जाय । मुंह बँधा होने से इसमें से वायु निकल नहीं सकती साथ ही बीच में बँधी होने से मशक दो भागों में विभाजित सी हो जाती है, उसका आकार डुगडुगी जैसा बन जायेगा । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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