SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३६ तत्त्वार्थ सूत्र : अध्याय ३ : सूत्र १-२ खरकांड में अनेक प्रकार के नुकीले भयंकर रत्न हैं, पंकजबहुल कांड में अत्याधिक कीचड़ है और अपबहल कांड में दुर्गन्धित जल.की अधिकता ह। इस पृथ्वी में खरकांड की मोटाई १६००० योजन, पंकबहुल कांड की ८४००० योजन और अपबहुल कांड की ८०००० योजन है । इस प्रकार रत्नप्रभा भूमि की कुल मोटाई १ लाख ८० हजार योजन है । . इसमें से ऊपर और नीचे के एक-एक हजार योजन छोड़कर शेष १,७८,००० योजन में १३ पाथड़े यानी पृथ्वीपिंड है और, १२ आन्तरे यानी अवकाश अथवा रिक्त स्थान है । इस प्रकार यह १३ मंजिल जैसा भवन है। पाथड़ों मे नरकावास है । इन नरकावासों की संख्या ३० लाख है । आन्तरो मे पहले दो आन्तरे रिक्त यानी खाली है और शेष १० में भवनपति देवों के निवास हैं । दूसरी नरकभूमि से सातवीं नरकभूमि तक के सभी आन्तरे रिक्त है । प्रथम नरकभूमि के नारकी जीवों की कम से कम आयु १०००० (दस हजार) वर्ष और अधिक से अधिक आयु १ सागर की है ।। (२) शर्कराप्रभा - इस भूमि की मोटाई १ लाख ३२ हजार. योजन है। इसमें ११ पाथड़े और १० आंतरे हैं । इन पाथड़ों में २५ लाख नरकावास जिनमें नारक जीव रहते हैं । इन नारक जीवों की जघन्य आयु १ सागर और उत्कृष्ट आयु ३ सागर की है । (३) बालुकाप्रभा - इस भूमि की मोटाई १ लाख २८ हजार योजन है । इसमें ९ पाथड़े और ८ आंतरे हैं नरकावास १५ लाख तथा जघन्य आयु ३ सागर व उत्कृष्ट आयु ७ सागर की है । (४) पंकप्रभा - इस भूमि की मोटाई १ लाख २० हजार योजन की है । पाथड़े ७ और आंतरे ६ हैं । नरकावास १० लाख तथा जघन्य और उत्कृष्ट आयु क्रमश : ७ तथा १० सागर की है । (५) धूमप्रभा - इस भूमि की मोटाई १ लाख १८ हजार योजन, पाथड़े ५ और आंतरे ४ तथा ३ लाख नरकावास हैं. यहाँ के नारक जीवों की जघन्य आयु १० सागर और उत्कृष्ट आयु १७ सागर की है । (६) तमःप्रभा - मोटाई १ लाख १६ हजार योजन, ३ पाथडे और २ आंतरे, नरकावासा ५ कम १ लाख हैं । आयु जघन्य १७ सागर और उत्कृष्ट २२ सागर है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy