SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १२ ) दस अध्यायों और मात्र ३४४ सूत्रों के इस अति लघुकाय ग्रंथ के केन्वास में आचार्यश्री ने नवतत्त्वों के जो रंग भरे हैं, वे अनूठे हैं, अनुपम हैं, विशिष्ट हैं। इन्द्रधनुष से भी अधिक शोभायमान हैं, अलौकिक आभा से प्रदीप्त हैं। ___ अनुयोगद्वार सूत्र जैनागमों की कुंजी कहलाता हैं । इसी प्रकार तत्त्वार्थसूत्र को जैनागमों के विशाल भवन के प्रवेश द्वार से उपमित किया जा सकता है। जो जिज्ञासु तत्त्वार्थ सूत्र को समझ लेंगे, इसमें वर्णित विषय को हृदयंगम कर लेंगे, उन्हे जैनागमों के रहस्य को समझने में सरलता हो जायेगी। ___ तत्त्वार्थ सूत्र के लघु आकार के कलेवर में ज्ञान का विशाल भण्डार छिपा हैं । आँख की पुतली (कीकी) कितनी छोटी-सी है ! किन्तु उसके द्वारा हम विशाल आकाश, अगणित चमकते तारे, ज्योतिपुंज सूर्य और स्निग्ध शीतल चाँदनी बिखेरता चन्द्र सभी कुछ देखते हैं। ___तत्त्वार्थ सूत्र जैन तत्त्वाज्ञान और विशाल आगमज्ञान के लिए आँख की कीकी के समान है तत्त्वार्थ सूत्र के सूत्र हीरे के छोटे - छोटे कण हैं जिनकी अपनी अनुपम आभा है, दीप्ति है, ज्योति है और इन सभी सूत्रों की समन्वित ज्योति से आत्मा शुभ्रज्ञान से ज्योतितप्रकाशित हो उठता है, अज्ञान का तिमिर हट जाता है । प्रस्तुत सम्पादन यद्यपि तत्त्वार्थ सूत्र पर संस्कृत में बड़ी गम्भीर टीकाएँ लिखी जा चुकी हैं । अनेक प्रसिद्ध विद्वानों ने हिन्दी में भी सुन्दर विवेचन प्रस्तुत किया है, फिर मैंने यह लघु प्रयास क्यों किया-यह एक प्रश्न उठता है। तत्त्वार्थसूत्र की संस्कृत टीकाएँ बहुत विस्तृत हैं, गम्भीर हैं और पण्डित प्रवर सुखलालजी का विवेचन बहुत सरल है, संक्षिप्त है,सारपूर्ण भी है किन्तु बहुत से ऐसे स्थल भी हैं जहाँ विवेचन अपेक्षित था,स्पष्टीकरण की ___ आवश्यकता थी । सबसे महत्वपूर्ण बात, तत्त्वार्थ सूत्र स्वयं में कोई स्थापना नहीं है। आगम नहीं है, आगम आधारित संग्रह ग्रन्थ है। इसलिए यह आवश्यक है कि हम इसके साथ ही यह भी जानकारी प्राप्त कर लेवें कि अमुक विषय आगम में कहाँ किस रूप में वर्णित है। यानि तत्त्वार्थ को हम आगम का प्रवेशद्वार बनायें, और उसके अध्ययन के साथ-साथ आगम ज्ञान की धारा को और अधिक विस्तृत करते जाएँ । इसलिए मैंने प्रारम्भ में आचार्य श्री आत्माराजी महाराज द्वारा सम्पादित 'तत्त्वार्थसूत्र-जैनागम समन्वय' के आधार पर आगम वचन मुख्य रखा है, उसका उद्धरण देते हुए फिर तत्त्वार्थ के सूत्र देकर विवेचन किया है । इससे तत्त्वार्थ सूत्र का महत्त्व कम नहीं हुआ, बल्कि उसकी प्रामाणिकता की आधारभूमि सुदृढ़ हुई है। इससे पाठक आगमों में अमुक-अमुक विषयों का विशद वर्णन देख सकते हैं । आगम अध्ययन की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिलेगा। __ मेरी यह भी भावना थी कि आगमों के उद्धृत सभी पाठों का मूल पाठांश शुद्ध है या नहीं यह देख लूं और उनके सन्दर्भ स्थल वर्तमान में उपलब्ध किसी एक प्रति से मिलाकर संशोधित कर लूं । इसके लिए अनेकश: प्रयत्न किये । मुनिश्री जम्बूविजय जी द्वारा संपादित (महावीर विद्यालय बम्बई) द्वारा प्रकाशित, जैन विश्व भारती लाडनूं द्वारा प्रकाशित तथा आगम समिति ब्यावर से प्रकाशित-तीनों संस्थाओं के आगम ग्रन्थ मंगाये, पाठ मिलाये । यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ कि इन संस्थाओं के गाथांक, सूत्रांक परस्पर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy