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________________ ( १० ) इस तथ्य को पाठक प्रस्तुत संस्करण में स्पष्ट देखेंगे। तत्तवार्थसूत्र की रचा का उद्देश्य सहज ही यह प्रश्न मस्तिष्क में आ सकता है कि जब आगमों में सब कुछ था तो उनके आधार पर तत्त्वार्थ सूत्र की रचना ही क्यों की गई ? जिज्ञासू पाठक आगमों से ही सब कुछ जान लेते । ऐसी दशा मे तत्त्वार्थ की रचना से क्या प्रयोजन सिद्ध हुआ ? इसकी रचना का उद्देश्य क्या है ? इसका समाधान यह है कि तत्त्वार्थ की रचना स-प्रयोजन हुई और इसकी रचना का विशिष्ट उद्देश्य था - (१) देश-काल की परिस्थिती - वीर निर्वाण की आठवी, नवीं शताब्दी मे देश मे गुप्त सम्राटो के उत्कर्ष के कारण संस्कृत भाषा का प्रभाव बढ़ रहा था। संस्कृत के विद्वानों का अधिक आदर होता था, उन्हें राजा लोगो भी विशेष सम्मान देते थे । संस्कृतभाषा को राज्याश्रय भी प्राप्त हो गाया था । गुप्त सम्राट संस्कृत प्रेमी थे । इसी कारण जनता के हृदय में भी संस्कृत के प्रति विशेष आदर था। संस्कृत भाषा को लोग देववाणी कहने लगे थे। ऐसी परिस्थितियों में जैन वाङ्मय में भी ऐसे ग्रन्थ की आवश्यकता अनुभव की जा रही थी जो संस्कृत भाषा में हो और सम्पूर्ण जैन सम्प्रदायों द्वारा मान्य हो । इस कार्य को तत्त्वार्थ सूत्र ने किया । (२) इस समय तक कणाद का वैशेषिक सूत्र, बादरायण का ब्रह्मसूत्र पतंजलि का योगसूत्र आदि कई ग्रन्थ रचे जा चुके थे । इनमें अपने - अपने दर्शन के मूल सिद्धान्त सूत्रशैली में दिये जा चुक थे । जनता में और विद्वानों में इनकी मान्यता भी बहुत थी । __ जैनदर्शन में भी ऐसे ही ग्रन्थ की आवश्यकता थी और यह आवश्यकता तत्त्वार्थसूत्र की रचना द्वारा पूरी हुई। (३) आगम बहुत ही विस्तृत हैं और इनके शब्दों में बड़े गुरू-गम्भीर रहस्य भरे पड़े हैं । उनको जानकर हृदयंगम कर लेना साधरण जन तो क्या, बड़े- बड़े मनीषियों के लिए भी कठिन है। फिर आगमों में कोई विषय कहीं, कोई कहीं यों फूलों की तरह विकीर्ण था । फिर आगमों में कोई विषय कहीं, कोई कहीं यों फूलों की तरह विकीर्ण था। एक विषय को समझने के लिए अनेक आगम टटोलने पड़ते थे । भाषा भी दुरूह हो चुकी थी। दूसरी बात, आगम तीर्थंकर देव की देशना (प्रवचन) हैं | उनमें एक विषय नहीं है, अनेकानेक विषय अलग-अलग आगमों में है। इससे एक सम्पूर्ण विषय को क्रमबद्ध पढ़ने में अनेक आगम पढ़ने पड़ते हैं । ___ किन्तु तत्त्वार्थसूत्र में तत्त्व की बहुत -सी बातें क्रमबद्ध सूत्ररुप में एक जगह संक्षिप्त शैली में संग्रहीत कर दी गई हैं । अत:इसका पारायण भी सरलता से हो सकता है, यह जल्दी ही समझ में आ जाता है। साधारण जन और विद्वाण मनीषी सभी इससे लाभ उठा सकते हैं। इसका (मात्र सूत्रों का) आवर्तन ३० मिनट में किया जा सकता है। अत:यह न समयसाध्य है, न श्रमसाध्य । भाषा भी सरल और सुबोध है। यह इसकी रचना का सर्वप्रमुख प्रयोजन और उद्देश्य हैं । तत्त्वार्थ सूत्र, इन्हीं विशेषताओं के कारण अत्यधिक लोकप्रिय हुआ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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