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________________ है, अथवा उन्होंने अपने द्वारा निर्मित सूत्रों के लिए कोई सबल, सुपुष्ट और सर्वमान्य आधार रखा है ? ___ सम्यकश्रुत का आविर्भाव तीर्थंकर की वाणी से हुआ, जिसे गणधरों ने बारह अंगों में गूंथा तथा उसका अनुसरण करते हुए अन्य श्रुतज्ञानी आचार्यों ने अन्य ग्रन्थों की रचना की । फिर भी द्वादशांग वाणी प्रत्येक जैन के लिए, चाहे वह किसी भी सम्प्रदाय का हो, मान्य है, विश्वसनीय है और श्रद्धा करने योग्य है। इन ग्रन्थों को आगम कहा गया है। इनकी संख्या बत्तीस है। जैसे - ११ अंग, १२ उपांग, ४ मूल, ४ छेद और आवश्यक सूत्र । इनका पारायण करना, हृदयंगम करना सम्यग्ज्ञान प्राप्ति के लिए आवश्यक है और इनमें वर्णित तत्त्वों पर श्रद्धा रखना सम्यग्दर्शन है तथा इनमें बताये गये चारित्र धर्म का पालन करना सम्यक्चारित्र है। और यही मोक्षमार्ग है। __ आचार्य उमास्वाति ने इन्ही आगम ग्रन्थों के आधार पर अपने सूत्रों की रचना की है। कहीं-कहीं तो उन्होने आगमों के मूल प्राकृत शब्दों को ही संस्कृत भाषा में रख दिया है और कहीं उन्होंने आगमों के भावों को लेकर सूत्र रचना की है। एक दो उदाहरण पर्याप्त होंगे। भाषारूपान्तर मात्र सम्मइंसणे दुविहे पण्णते,तं जहा-णिसग्गसम्मई सणे चेव अभिगम सम्महंसणे चेव । - स्थानांग, स्थान २, उ.१,सू.७० तन्निसर्गादधिगमाद्वा । . - तत्त्वार्थ १,३ पंचविहे णाणे पण्णत्ते, तं जहा-आमिणिबोहियणाणे, सुयनाणे,ओहिनाणे, मणपज्जवणाणे, केवलणाणे । - स्थानांग,स्थान ५ उ. ३, सू. ४६३ ; अनुयोगद्वार सूत्र १; - नन्दी सूत्र १; भगवती श.८, उ.२,सू.३१८ मतिश्रु तावधिमन:पर्यायकेवलानि ज्ञानम् । -तत्त्वार्थ १,३ . उपरोक्त आगम शब्दो में तथा तत्त्वार्थ में भाषागत अन्तर के सिवाय और कोई अन्तर नहीं है। प्राकृत के शब्द ज्यों की त्यों संस्कृत भाषा में सूत्र की संक्षिप्त शैली में रख दिये गये हैं । ___ अब एक ऐसी उदाहरण देख लीजिए जिसमें आगम के भावों के अनुसार सूत्र-रचना की गई है__उज्जुमईणं अणंते अणंतपएसिए खंधे जाणइ पासइ ते चेव विउलमई, अव्वहियतराए विउलतराए विसुद्धतराए वितिमितरतराए जाणइ पासइ । - नन्दी सूत्र, सू. १८ विशुद्ध यप्रतिपाताभ्यां तद्विशेष: - तत्त्वार्थ १/२५ यहाँ ऋजुमति और विपुलमति मन:-पर्यायज्ञान का अन्तर बताया गया है। आगमोक्त उद्धरण में जिस बात को विस्तार से कहा गया है, उसी भाव का अनुसरण करते हुए सूत्रकार ने सूत्र की संक्षिप्त शैली में उसे रख दिया है। संपूर्ण ग्रन्थ (तत्त्वार्थ सूत्र) की रचना इन्हीं दो शैलियों में हुई है। कही आगम शब्दों का संस्कृत रूप दिखाई देता है तो कहीं उनके भावों के अनुसरण के आधार पर सूत्र रचे गये हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004098
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni, Shreechand Surana
PublisherKamla Sadhanodaya Trust
Publication Year2005
Total Pages504
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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