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( ८ ) लक्ष्य प्राप्ति मे सफलता प्राप्त होती है.
इस दृष्टि से विषय को ज्ञान-मीमांस, ज्ञेयमीमांसा और चारित्र मीमांसा-इन तीन भेदों में विभाजित किया जा सकता है।
आचार्य उमास्वाति ने तत्त्वार्थ सूत्र में वर्ण्य विषय को दस अध्यायों में विभाजित किया है। इनमें से प्रथम अध्याय में ज्ञान-मीमांसा का विवेचन है, दुसरे से पाँचवे अध्याय तक मे 'ज्ञेय-मीमांसा और छठे से दसवें तक के अध्यायों में 'चारित्र-मीमांसा' विवेचित है। __प्रथम अध्याय में जीवन के भाव (परिणाम), भेद प्रभेद, इन्द्रिय, मृत्यु और अगले जन्म के बीच का काल (विग्रह गति), शरीर, जाति, जीव की टूटने और न टूटने वाली आयु का वर्णन है।
तीसरे अध्याय में नरक गति तथा अधोलोक का परिचय, मध्य लोक में मनुष्य क्षेत्र का वर्णण तथा मनुष्य एवं तिर्यंच जीवों की आयु आदि का विवेचन प्राप्त होता है।
चौथे अध्याय में देव गति तथा ऊर्ध्व वर्णित है।
पाँचवे अध्याय में पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल इन पाँच द्रव्यों का विस्तृत वर्णन हुआ है।
इस प्रकार तीसरे-चौथे-पाँचवें अध्याय में सम्पूर्ण लोक विचारणा प्राप्त होती है। .
यह तीनों अध्याय आधुनिक विज्ञान और भौतिक द्रव्यों के अनुसंधाताओं के लिए भी पथ-प्रदर्शक की भूमिका निभा सकते हैं।
छठवें से दसवें अभ्यास तक चारित्र -मीमांसा है।
चारित्र-मीमांसा में जीवन की हेय प्रवृत्तियों, उनके हेतु, मूल बीज,परिणाम आदि का विचार किया गया है, साथ ही उन हेय प्रवृत्तियों के त्याग त्याग के उपाय, उपादेय प्रवृत्तियों के ग्रहण और इनसे होने वाले परिणाम विचारणीय विषय हैं।
छठवें अध्याय में आस्त्रव का बहु आयामी विवेचन है। __ सातवें अध्याय में विरति अर्थात् हिंसा आदि पापों से विरमण-व्रत का विवेचन है। इसी में गृहस्थ साधक के १२ व्रतों का अतिचार सहित वर्ण है। साथ ही व्रतों की स्थिरता हेतु २५ भावनाएँ भी बताई गई हैं ।
आठवें अध्याय में कर्म-प्रकृतियों का सांगोपांग वर्णन है ।
नवें अध्याय में संवर-निर्जरा यह दो तत्त्व वर्णित हैं । संवर-निर्जरा के लक्षण, इनके उपाय,साधन, भेद-प्रभेद आदि का भी वर्णन किया गया है। अन्त में विभिन्न स्थितियों के जीवों की निर्जरा की तरतमता बता दी गई है।
दसवें अध्याय में मुक्त जीवों (जीवनन्मुक्त -अरिहंत और अशरीरी सिद्धों) का वर्णन हुआ है।
इस प्रकार सम्पूर्ण तत्त्वार्थ सूत्र में रत्नत्रयी (सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र) रूप सम्पूर्ण मोक्षमार्ग विवेचित हुआ है । इसी के अन्तर्गत सात किंवा नव तत्व (Fundamental Elements) जीव,अजीवन, आस्त्रव, संवर, बंध, पुण्य, पाप, निर्जरा, और मोक्ष-इन नौ तत्त्वों का सम्पूर्ण विवेचन हुआ है।
तत्त्वार्थ सूत्र का आधार ___ यहाँ प्रमुख प्रश्न यह है कि आचार्य उमास्वाति ने जो नव तत्वों का तथा मोक्षमार्ग का विवेचन प्रस्तुत ग्रन्थ में किया है, उसका आधार क्या है? क्या यह उनकी स्वतन्त्र रचना
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