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जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व
इत्यादि बत्तीस प्रकार के अनंतकायों में प्रत्येक के सुई की नोंक के बराबर खण्ड में भी अनंत जीव-राशि होती है। इनका शरीर एक प्रतीत होता है, परंतु उसमें असंख्यात और अनंत जीव होते हैं, वह जीवों का स्टोर हाउस है। "इनको खाने वालों के द्वारा व्रत, उपवास, यम, नियम, शील, संयम, देवशास्त्र एवं गुरु की की गई भक्ति और तीर्थयात्रा- सब ही निष्फल हो जाते हैं।"113
द्विदल, अर्थात् जिनकी दो दाल होती है और जिन्हें पेलने पर तेल निकलता है, वे सभी खाद्य-पदार्थ द्विदल हैं। द्विदल से बनी वस्तुएं, जैसे- दहीबड़े, गट्टे आदि। इन्हें बिना उबले दही छाछ के साथ खाना अभक्ष्य है। इनमें अतिशीघ्र खमीर उठने से जीवोत्पत्ति हो जाती है, अतः ये अग्राह्य हैं।
चलित रस, जिसका स्वाद बदल गया हो, उसे चलित रस कहते हैं, वह अभक्ष्य है, क्योंकि यह सड़ने या जीवोत्पत्ति होने का लक्षण है। यह अनुभवजन्य है कि प्रत्येक नई वस्तु पुरानी होती है। समय बीतने के साथ वह सड़ने, गलने और खराब होने लगती है, अतः वे सभी वस्तुएं भी अभक्ष्य हो जाती हैं। हर वस्तु की अविकृत अवस्था में रहने की एक समयमर्यादा होती है। समय बीतने पर वे भी अभक्ष्य हो जाती हैं। शास्त्रों मे कहा गया है –जिस वस्तु का वर्ण, गंध, रंस और स्पर्श बदल जाता है, तो चलितरस समझकर उसे अभक्ष्य मानना चाहिए। कितने ही पदार्थ एक रात बीतने पर अभक्ष्य बन जाते हैं। कईं पदार्थों का स्वाद पन्द्रह-बीस दिन में परिवर्तित होने लगता है और कुछ पदार्थ चार-आठ महीने तक भी खराब नहीं होते। ऐसी सभी खाद्य-सामग्रियों की समय-मर्यादा जानकर, उनको अभक्ष्य मानकर, उनका त्याग कर देना चाहिए।
एक रात बीतने पर अभक्ष्य बनने वाले पदार्थ -
जिन पदार्थों में नमी का अंश रह जाता है, वे सभी पदार्थ एक रात बीतने पर 'बासी' कहलाते हैं। नमी या जलीय अंश पदार्थ को थोड़े समय में ही सड़ा देता है। फर्नीचर घर में है, वह तब तक सलामत रहेगा, जब
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A तीर्थोपवास संयम तपदानव्रतानि च। सेवते कम्दमूलानि ये वृक्षा पंचगुरू भान्ति।। - उपासकाध्ययन, 14/43
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