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________________ जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व 87 तक वह गीला न हो, उसी तरह खाद्य पदार्थों में जल या नमी का अंश पदार्थ को खराब करने लगता है और उनमें जीवोत्पत्ति होने लगती है। रात बीतने पर बासी पदार्थ-114 रोटी ब्रेड दूधपाक गुलाबजामुन कच्चा मावा पराठा रणपोली जी आदि भजिया बड़ा ढोकला हांडवा इइडली डोसा फचौरी-समोसा जलेबी खीर मलाई बासुंदी श्रीखंड हलुआ रसमलाई बंगाली मिठाई आदि सेका हुआ पापड़ पानी वाली चटनी शरबत का एसेन्स आदि कुछ दिनों बाद अभक्ष्य बनने वाले पदार्थ - जैनदर्शन में सूखे पदार्थों के अभक्ष्य होने की एक समय-मर्यादा मानी गई है। जिन पदार्थों को सेंककर या तलकर बनाते हैं और जिन पदार्थों को गाढ़ी चाशनी बनाकर तैयार करते हैं, वे पदार्थ अपनी पाक-पद्धति के कारण दीर्घ समय तक सड़न से सुरक्षित रहते हैं, ऐसे पदार्थों में समय-मर्यादा मौसम के अनुसार होती रहती है। 714 रिसर्च ऑफ डाइनिंग टेबल, आचार्य हेमरत्नसूरिजी, पृ. 38 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004097
Book TitleJain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages580
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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