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________________ जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व दिन भर कुछ-न-कुछ खाते ही रहते हैं। संसार में दो प्रकार के मनुष्य हैं, एक तो वे, जो जीने के लिए खाते हैं और दूसरे वे, जो खाने के लिए जीते हैं। दूसरे प्रकार के मनुष्यों को सदैव खाने की ही चिन्ता रहती है। पेट भर जाता है, पर उनकी इच्छा नहीं भरती है। दिन भर नाना प्रकार के पदार्थ खाने में ही उनका समय व्यतीत होता है। इस प्रकार के लोगों का जीवन भाररूप बन जाता है और खादय-अविवेक के कारण वे कई नई-नई बीमारियों को आमंत्रित करते हैं। भोजन की मात्रा सीमित रखें - स्वस्थ रहने की अभिलाषा सभी जीवों को रहती है। जो रोगों से बचना चाहता है, उसे आहार की मात्रा का अवश्य ध्यान रखना चाहिए। जब तक एक बार का ग्रहण किया हुआ भोजन पच न जाए, तब तक पुनः . नहीं खाना चाहिए। कोई पदार्थ इसलिए नहीं खाना चाहिए कि वह बहुत स्वादिष्ट है, या उसके खाने के लिए मन करता है, बल्कि इस सम्बन्ध में उदर से परामर्श लेना आवश्यक है। जिस समय उदर खाने की अनुमति न दे, उस समय अमृत को भी विष के समान समझकर त्याग देना चाहिए। भावप्रकाश नामक वैद्यकग्रंथ में कहा गया है -"आमाशय के दो भाग भोजन से और एक भाग पानी से भरना चाहिए तथा चौथा भाग वायु-संचरण के लिए खाली छोड़ देना चाहिए ।। 94 जिस प्रकार भूख से अधिक खाना हानिकारक है, उसी प्रकार बहुत कम खाना भी ठीक नहीं है। आवश्यकता से कम भोजन करने पर दुर्बलता, ग्लानि, अनिद्रा-रोग और वायु के रोग उत्पन्न होते हैं। भोजन की मात्रा के लिए कोई तौल नियत करना उचित नहीं है, आहार की मात्रा का निर्धारण भूख के आधार पर या दैहिक आवश्यकता के आधार पर करना ही ठीक है, अतः जितना भोजन सुख से पच सके, उतना ही खाना चाहिए। आचारांगसूत्र में कहा गया है कि मुनि को मात्रज्ञ होना चाहिए, अर्थात् उसे भोजन की मात्रा का ज्ञान होना चाहिए। 94 कुक्षेभार्गद्धयं भोजोस्तृतीये वारि पूरयेत्।। वायो संचारणार्थाय चतुर्थमवशेषयेत् ।। - भावप्रकाश 95 लद्धे आहारे अणगारे मायं जाणेज्जा, से जहेयं भगवया पवेइयं – आचारांगसूत्र 1/5/113 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004097
Book TitleJain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages580
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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