SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 70 (1) आभोग - निवर्तित (2) अनाभोग - निवर्तित 1. आभोग - निवर्तित जो इच्छापूर्वक खाया जाए। यह आहार पर्याप्तावस्था में ही होता है, क्योंकि 'मैं अमुक पदार्थ खाऊँ' पर्याप्तावस्था में ही हो सकती है। ऐसी इच्छा - 2. अनाभोग - निवर्तित जो खाने की विशिष्ट इच्छा के बिना ही खाया जाए, जैसे— वर्षा ऋतु में शीतपुद्गलों का अनायास शरीर में प्रवेश होना। यह आहार अपर्याप्ता देवों में होता है, कारण, उस समय मनपर्याप्ति न होने से आहार की विशिष्ट इच्छा नहीं होती है। 89 जैन-ग्रन्थों में आहार के विभिन्न प्रकारों के अन्तर्गत नरक के जीवों का आहार उष्णता एवं शीतलता के आधार पर चार प्रकार का प्रतिपादित किया गया है 90 1. अंगारोपम, 2. मुर्मुरोपम 3. शीतल और 4. हिमशीतल । तिर्यंच जीवों के आहार को कंकोपम, विलोपम, पाणमांसोपम एवं पुगसांसोपम के भेद से चार प्रकार का निरूपित किया गया है। मनुष्यों का आहार अशन, पान, खादिम और स्वादिम के भेद से चार प्रकार का है। यही चार प्रकार का आहार मनोज्ञ एवं अमनोज्ञ के आधार पर आठ प्रकार का हो जाता है। 89 देवों के आहार को वर्णादि के आधार पर चार प्रकार का बतलाया है— वर्णवान्, गंधवान्, रसवान् और स्पर्शवान् । ̈ Jain Education International जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व तत्थ णं जे से आभोगणिव्वत्तिए से णं असंखेज्जसमइए संतोमुहुत्तिए आहारट्ठे समुप्पज्जइ । - प्रज्ञापनासूत्र, प. 28, उ. 1, सूत्र - 1795 अट्ठविहे आहारोपणते, तं जहा स्थानांगसूत्र 4/4/340 1-4 मणे असणे जाव साइमे 1-4 अणुणे असणे जाव साइमे स्थानांगसूत्र 8, सूत्र 623 चउगईण आहार रूवं (1) नेरइयाण चउव्विहे आहारे पण्णते, तं जहा 1. इंगालोव 2. मुम्रो 3. सीतले 4. हिमसीतले (2) तिरिक्खजोणियाणं चउव्विहे आहारे पण्णते, तं जहा - 1. कंकोव 2. विलोवमे 4. पुत्तमसोवमे (3) मणुस्साणं चउव्विहे आहारे पण्णते, तं जहा 1. असणे 2. पाणे (4) देवाणं चउव्विहे आहारे पण्णते, तं जहा - 1 3. पाणमंसोवये - - 3. खाइमे 4. साइमे For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004097
Book TitleJain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages580
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy