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जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व
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उसकी बौद्धिक क्षमता intellectual ability} दिन-प्रतिदिन गिरती जाती है और संशय {Confusion} बढ़ता जाता है। वह घटनाओं को ठीक ढंग से याद नहीं रख पाता है। शोक के कारण वह छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान भी ठीक ढंग से नहीं कर पाता है।
8. शोक के कारण भूख कम लगती है तथा शारीरिक-वजन में कमी
आती है, या इसके विपरीत भूख अधिक लगती है या शारीरिकवजन में वृद्धि होती है।
9. ऊर्जा की कमी तथा थकान का अनुभव होता है।
10. शोकग्रस्त व्यक्ति अपनी जिंदगी की क्रियाओं एवं दबावों से बचने
के लिए आत्महत्या {suicide) करने में भी नहीं हिचकिचाता।
वस्तुतः, शोक एक मानसिक-विकार है, जिसे सकारात्मक विचारों के माध्यम से हटाया जा सकता है। अगले अध्याय में, शोक पर विजय किस प्रकार से करें- इस बात की चर्चा करेंगे।
शोक पर विजय कैसे ? ।
शोक का विपरीत शब्द उत्साह है, शोक तभी होता है, जहाँ उत्साह की कमी होती है। जहाँ उत्साह है, आत्मविश्वास है, दृढ़ निश्चय और पुरुषार्थ है, वहाँ शोक कभी भी अपना साम्राज्य स्थापित नहीं कर सकता। शोक पर विजय हम मन की दृढ़ता और मजबूत विचारों के द्वारा कर सकते हैं, क्योंकि व्यक्ति शोक तभी करता है, जब उसको निराशा और असफलता प्राप्त होती है। वह असफलता को ही अपना मानकर निरुत्साह होकर शोक-सागर में डूब जाता है, जैसे
"गणधर गौतम का भगवान महावीर के प्रति असीम अनुराग था। गौतम जब देवशर्मा को प्रतिबोध देने के बाद वापस पावापुरी की ओर आ रहे थे, उस समय जाते हुए देवताओं के मुखों से तथा अवरूद्ध कण्ठों से एक ही शब्द निकल रहा था –“आज ज्ञान का सूर्य अस्त हो गया है, प्रभु महावीर निर्वाण को प्राप्त हो गए हैं। अन्तिम दर्शन करने शीघ्र चलो।" देवों के मुख से निःसृत उक्त शब्द गौतम के कानों में पहुंचे और वे सहसा
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