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- जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व
2. शोक के कारण व्यक्ति द्रवित हो जाता है, आँखों से आँसू बहना,
छाती पीटना, दूसरे जीवों को रुलाना, शोकसंतप्त करना आदि क्रियाकलाप करता है और इन हेतुओं से शोक-मोहनीयकर्म का बंधन करता है। जब यह कर्म उदय में आता है, तब जीव शोकसागर में डूब जाता है।
3. शोक के कारण चिंता anxiety} और तनाव {tension} अधिक
बढ़ जाता है, इस कारण उन्हें अपने शौक hobby, मनोरंजन तथा परिवार -सभी अर्थहीन लगते हैं, इनसे उन्हें किसी प्रकार का कोई आनन्द नहीं आता। मनोवैज्ञानिक तो यहाँ तक कहते हैं कि विषाद (शोक) के कारण प्रमुख जैविक-क्रियाएँ, जैसे- भोजन एवं यौन सम्बन्ध भी इनके लिए कोई सार्थक सुख का साधन नहीं रह जाती हैं।1176
4. शोक व्यक्ति के चित्त में नकारात्मक भावों का उद्दीपक बन जाता
है। शोकावस्था में व्यक्ति इतना उदास हो जाता है कि वह अपने-आपको समाप्त करने के लिए भी तत्पर हो जाता है।
5. आचार्य महाप्रज्ञजी ने उदासी का एक कारण ग्रंथियों का
रसायन-स्राव संतुलित नहीं होना भी माना है। जेराटोनिन रसायन की कमी के कारण उदासी अकारण ही आ जाती है। 117 यह मस्तिष्क का एक रसायन है। इसकी कमी या असंतुलन उदासी (शोक) का कारण बनता है।
6. शोक के कारण व्यक्ति वस्तु-तत्त्व का सही ज्ञान नहीं कर सकता,
इसलिए शोक मुक्ति में बाधक है।
7. शोक के कारण व्यक्ति का चिंतन नकारात्मक हो जाता है। वह
अपने-आपको असफल, अयोग्य और दोषभाव {guilt feeling} से युक्त मानता है। ऐसा व्यक्ति जीवन में जब-जब असफल होता है, उसका पूर्ण दायित्व वह अपने ऊपर ले लेता है और अपने भविष्य को निराशा एवं उदासी से भरा समझता है, इस कारण,
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आधुनिक असामान्य मनोविज्ञान, अरूणकुमार सिंह, पृ. 445 सोया मन जग जाए, आचार्य महाप्रज्ञ, पृ. 100
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