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जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व
दुःखमुक्ति के उपाय -
___ भारतीय-दर्शनों में जैन, बौद्ध, सांख्य आदि दर्शनों के चिन्तन का आरम्भिक सोपान भले ही दुःख रहा हो, किन्तु उसकी अन्तिम परिणति तो पूर्ण दुःखविमुक्ति या निर्वाण की प्राप्ति में है। भारतीय-दर्शन का मूलमंत्र'अंधकार से प्रकाश की ओर, असत् से सत् की ओर तथा मृत्यु से अमरत्व की ओर अग्रसर होना है।'
समाधिशतक में दुःखमुक्ति के उपाय को बताते हुए कहा गया है"भेद-विज्ञान के द्वारा जो पुरुष आत्मस्वरूप को प्राप्त कर लेता है, उसके सभी दुःख नष्ट हो जाते हैं।"922 आत्मानुशासन में कहा है -"इष्ट वस्तु की हानि से शोक और फिर उससे दुःख होता है तथा फिर उसके लाभ से राग तथा फिर उससे सुख होता है, इसलिए बुद्धिमान् पुरुष को इष्ट की हानि में शोक से रहित होकर सदा सुखी रहना चाहिए। 923
बौद्धदर्शन के चार आर्यसत्यों में दुःख के कारण की विवेचना के साथ-साथ दुःख-निवारण की स्वीकृति और दुःख-निवारण के उपायों की चर्चा भी की गई है।
जैनदर्शन दुःख-विमुक्ति को मोक्ष के रूप में स्वीकार करता है। सांख्यदर्शन आध्यात्मिक, आधिभौतिक एवं आधि-दैविक दुःखों की विवेचना के साथ पुरुष एवं प्रकृति के भेदज्ञान को दुःख-निवृत्ति का उपाय बतलाता है, अर्थात् जब तक पुरुष अपने-आपको प्रकृति से भिन्न नहीं समझ लेता, उसे दुःख से मुक्ति नहीं मिल सकती। इसी प्रकार, गीता निष्काम कर्म को दुःख–मुक्ति का साधन मानती है। 24
उत्तराध्ययनसूत्र में स्पष्ट रूप से कहा है कि सम्पूर्ण ज्ञान के प्रकाशन, अज्ञान एवं मोह के विसर्जन तथा राग और द्वेष के उन्मूलन से
922 आत्मविभ्रमजं दुःखमात्मज्ञानात्प्रशाम्यति।
नायतास्तत्र निर्वान्ति कृत्वापि परमं तपः ।। – समाधिशतक, श्लोक 41 925 आत्मानुशासन, श्लोक- 186-187 924
गीता - 2/39
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