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________________ जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व प्रसंगानुसार, एक राजा बहुत बीमार हो गया। कुशल वैद्यों के इलाज से भी ठीक नहीं हुआ। अन्त में, एक वैद्य ने इलाज बताया कि ऐसे आदमी की कमीज लाओ, जो अत्यन्त खुश हो, परंतु दूर-दूर तक दूत व संदेशवाहक भेजे जाने पर भी सफलता नहीं मिली। एक दिन एक व्यक्ति हंसी से लोट-पोट होते मिला, तो राजा के सैनिक उसे पकड़कर राजा के पास ले गए। राजा ने जब उसकी कमीज मांगी, तो उसने जवाब दिया"यदि मेरे पास कमीज या कोई भी वस्तु होती, तो क्या मैं कभी सुखी हो सकता था ? राजन्! मेरे पास कुछ नहीं है और न पाने की इच्छा है, इसीलिए मैं सुखी व प्रसन्न हूँ।" उसकी खुशी का राज यही था कि उसके पास कोई वस्तु नहीं थी, अर्थात वह निष्काम और अपरिग्रही था। वास्तविक दुःख या रोग कामना और वस्तुओं की चाह का है। इनसे ही व्यक्ति दुःखी होता है। वस्तु, व्यक्ति और कीर्ति की कामना के समाप्त होते ही आदमी सुखी हो जाता है। सुख और दुःख का अर्थ तथा उनकी सापेक्षता - सुख शब्द 'सुख्+अच् धातु से निष्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ हैप्रसन्न, आनन्दित, खुश आदि ।990 अंग्रेजी में इसे प्लेज़र Pleasure) कहते हैं, जिसका अर्थ विषय-सुख, आनन्द, संतोष आदि है।991 दुःख शब्द मूलतः संस्कृत भाषा का 'दुःखं' शब्द है। यह शब्द विशेषण के रूप में प्रयुक्त हुआ है। 'दुष्टानि खानि यस्मिन या दुष्टं खनति यः स दुःखं', जिसका अर्थ है -जो पीड़ा देता है, वह दुःख है, अतः जो पीडाकारक या अरुचिकर है, वह दुःख है। कठिनता से प्राप्त, बैचेनी, खेद, रंज, विषाद, वेदना और कष्ट देने वाला दुःख है ।992 सुख-दुःख का लक्षण - 890 संस्कृत-हिन्दी कोश, भारतीय विद्या प्रकाशन, दिल्ली, पृ. 1114 391 Bhargava's Standard Illustrated Dictionary of the English Language -P.N. 629 . 892 वामनं शिवराम आप्टे, संस्कृत-हिन्दी कोश, पृ.-462 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004097
Book TitleJain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages580
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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