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जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व
मरना ही अच्छा रहा, तब तो वीसवासीस ।।
4. उपधि के कारण -
उपधि, अर्थात सामान्य साधन-सामग्री। चेतना का जब भौतिक-जगत् से सम्बन्ध होता है, तो उसे अनेक वस्तुएं अपने प्राणमय जीवन के लिए आवश्यक प्रतीत होती हैं। यही आवश्यकता जब आसक्ति में बदल जाती है, तो एक ओर संग्रह होता जाता है, दूसरी ओर संग्रह की लालसा बढ़ती जाती है, इसलिए उपधि अर्थात् भोग-उपभोग की साधन-सामग्री भी लोभ को उकसाने में निमित्त बनती है।
उपर्युक्त कारणों के अतिरिक्त निम्न कारणों से भी लोभ उत्पन्न होता है -
पूर्वकृत लोभ-मोहनीय नामक कर्म-प्रकृति के उदय से लोभ
उत्पन्न होता है। • जीवन की अस्थिरता, धन की चंचलता, कर्मफल आदि
आध्यात्मिक विचारों के नित्य चिन्तन-मनन के अभाव से लोभ-प्रवृत्ति बढ़ती है। अपने से नीचे वालों की तरफ कभी दष्टि नहीं डालने और अपने से ऊपर के स्तर के लोगों की धन-सम्पदा देखकर भी लोभ उत्पन्न होता है। संतोष के सही स्वरूप व उसके लाभ को नहीं समझने से लोभ
बढ़ता है। • समाज में इज्जत या प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए लोभी व्यक्ति
निरंतर साधन-सामग्री के संग्रह के चिन्तन में डूबा रहता है। अपने से ज्यादा धन या भौतिक-पदार्थ वाले को सुखी समझने से
लोभ बढ़ता है। • धन या भौतिक-पदार्थों को ही सुख का कारण समझने-रूप
अज्ञान से लोभ उत्पन्न होता है।
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