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जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व
9. आशंसना – इच्छित वस्तु की प्राप्ति के लिए दिया जाने वाला आशीर्वाद।
10. प्रार्थना - प्रार्थना करना, याचना करना, मांगना आदि, अर्थात् सम्पत्ति, धन, इच्छित वस्तु की याचना करना प्रार्थना है।
11. लालपनता - इष्ट वस्तु को प्राप्त करने के लिए बार-बार प्रार्थना करना और जब तक वस्तु प्राप्त न हो जाए, तब तक प्रार्थना करते रहना।
12. कामाशा - काम की इच्छा, शब्द, रूप आदि को पाने की इच्छा कामाशा है।
13. भोगाशा – गंध, रस आदि पदार्थों को भोगने की कामना भोगाशा है। मधुर स्वर, सुंदर रूप, षट्रस भोजन, सुरभी गंध और मुलायम वस्त्रादि को भोगने की इच्छा भोगाशा होती है।
14. जीविताशा – जीवित रहने की इच्छा। जीव की सबसे प्रथम इच्छा जिजीविषा (जीने की प्रबल इच्छा) है और वह अन्त तक रहती है। आचारांग में भी कहा है –'सब्वे पाणा पिआउआ',807 सभी प्राणियों को अपनी जिंदगी प्यारी है और जीवित रहने की इच्छा ही जीविताशा है।
15. मरणाशा - मरने की इच्छा। दुःख, निराशा, मान-सम्मान में हानि के भय से, व्यापार में नुकसान या किसी के वियोग के कारण मृत्यु की इच्छा ही मरणाशा है।
16. नंदिराग - प्राप्त समृद्धि में होने वाली प्रसन्नता, रंजनात्मक-मनोवृत्ति नंदिराग है। व्यक्ति की प्रसन्नता उसकी सम्पत्ति और धनादि को देखकर और बढ़ती है और उन वस्तुओं को देखने से मिलने वाली खुशी ही नंदिराग है।808
807 आचारांगसूत्र- 1/2/3 808 लोभे त्ति सामान्यं इच्छा ............... नंदिराग। - भगवतीवृत्ति- 12/106
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