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जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व
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4. उपधि के कारण - सामान्य साधन-सामग्री को प्राप्त करने के
लिए माया की प्रवृत्ति करना।
माया की उत्पत्ति में उक्त चार कारण सभी जीवों में विद्यमान रहते हैं। वस्तुतः, उपर्युक्त चार प्रकार के अलावा माया के निम्न कारण भी हो सकते हैं -
1. माया के लिए माया - व्यापार में झूठ, ठगाई, अत्यधिक मुनाफा, मिलावट, करों की चोरी, विश्वासघातादि सारे कुकृत्य, धन (माया) कमाने की भावना से ही किए जाते हैं और यह मान लिया जाता है कि धनार्जन में नैतिकता आवश्यक नहीं है।
2. भविष्य की हानि का विचार न होने से - झूठ, चोरी, ठगी
आदि कुकृत्य मेरे समाज अथवा राज्य में उजागर न हो जाएं, इससे बचने के लिए व्यक्ति द्वारा मायापूर्वक व्यवहार किया जाता है और पुलिस एवं राज्यों को धोखा देकर वह अपना स्वार्थ सिद्ध करता है।
3. मान के लिए माया - व्यक्ति अपनी मान-प्रतिष्ठा, अहंकारादि के
पोषण के लिए एवं अपने दुर्गुणों को छिपाकर गुणी कहलाने के लिए भी माया का प्रयोग करता है।
4. पूर्व संस्कारों से – कई जन्तु, जैसे -छिपकली, बिल्ली, चीता,
बगुला तथा कई मानव पूर्वजन्म के संस्कारों के कारण जन्म एवं
स्वभाव से ही कपटी होते हैं। 5. दूसरों को गुमराह करने के लिए - अपनी स्थिति, चाहे वह
धन-संबंधी हो, स्वभाव-संबंधी, दुर्गुण-संबंधी अथवा ज्ञान-संबंधी, वह दूसरों को मालूम न पड़ जाए, इस कारण असली स्थिति को छिपाकर झूठा दिखावा किया जाता है।
वर्तमान समय में विज्ञापनों के द्वारा लोगों को सम्मोहित किया जाता है। वस्तु की गुणवत्ता का झूठा बखान कर जनता को ठगा जाता है। अंदर कुछ और बाहर कुछ' का प्रदर्शनादि सभी मायाचार को उत्पन्न करते हैं और भोली-भाली जनता को ठगते हैं।
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