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जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व
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4. कुहक - किसी की गुप्त बात को जानना। 5. छन्न - गुप्त प्रयोगों अथवा विश्वासघात करने का प्रयास करना।
माया के विभिन्न रूपों की चर्चा में यह स्पष्ट होता है कि इसमें दूसरों को ठगने के लिए षड्यंत्र रचे जाते हैं। माया से जो जगत् को ठगता है, वास्तव में वह अपनी आत्मा को ही ठगता है। अपने पापकार्यों को छिपाने की वृत्तिवाला वह व्यक्ति बगुले के समान मायारूप पापकर्म करता है। जैसे बगुला मछली आदि को धोखा देने के लिए ध्यान-चेष्टा करता है, उसी तरह मायावी जगत् को ठगता है और वह अपनी माया को छिपाता फिरता है। जिस प्रकार ऊबड़-खाबड़ दीवार पर चित्र के विभिन्न रंग व चित्र ठीक प्रकार से नहीं उभरता, उसी प्रकार मायावी का किया गया धर्म-कार्य भी सफल नहीं हो पाता है।
माया के चार प्रकार45 -
1. अनंतानुबन्धी-माया (तीव्रतम कपटाचार)- अनंतानुबन्धी माया
कठिन बांस के मूल के समान कही गई है। जिस प्रकार वन में उत्पन्न हुए मजबूत बांस का मूल भाग अत्यधिक वक्र एवं मजबूत होने से अनेक बार खींचने पर भी खिसकता नहीं है, वह टूट जाता है, पर वक्रता का त्याग नहीं करता, उसी प्रकार अनंतानुबंधी माया के मलिन परिणामों से युक्त जीवात्मा अपने जीवन को मृत्यु के यज्ञ में होमने के लिए तैयार हो जाता है, परन्तु अपनी वक्रता को किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ता है। ...
2. अप्रत्याख्यानी-माया (तीव्रतर कपटाचार)- अप्रत्याख्यानी-माया
भैंस के सींग के समान कुटिल कही गई है। भैंस का सींग वक्र होता है, वह वक्रता अत्यधिक परिश्रम करने पर ही समाप्त होती है, उसी प्रकार अप्रत्याख्यानी मायावी जीवात्मा की वक्रता अति परिश्रम के बाद ही समाप्त होती है।
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क) प्रथम कर्मग्रंथ -- गाथा. 19-20 ख) चउविधा माया पण्णता, तं जहा....अणंतानुबंधीन माया, अपच्पक्खाणकसाया। -स्थानांगसूत्र
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