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________________ 332 जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व है, जिसमें व्यक्ति को न अपने गुण-अवगुणों की समझ है, न दूसरों के गुण-अवगुणों की। यह कहते अतिशयोक्ति नहीं होगी कि अभिमान के कारण पागल बने व्यक्ति इसी श्रेणी में गिने जाते यह चार प्रकार के मान नारक से लेकर वैमानिक तक के सभी जीवों में होते हैं। मान के दुष्परिणाम अभिमान, गर्व, अहंकार ये सब 'मान' शब्द के ही समानार्थी हैं। इस मानरूपी शत्रु को पहचानना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि इसके जीवन में प्रवेश होने पर भी हमें यह ख्याल नहीं रहता कि हममें मानरूपी शत्रु प्रवेश कर हमारे आन्तरिक-परिणामों को दूषित कर रहा है। क्रोध संवेग को तो मानसिक अशांति और शारीरिक क्रियाकलापों से पहचान सकते हैं और शब्दों की अभिव्यक्ति के द्वारा क्रोध का वमन भी शीघ्र हो जाता है, परन्तु क्रोध से भी भयंकर मान है। मान का वमन शीघ्र नहीं होता, वह तो समय के साथ और पुष्ट होता जाता है और अभिमान में चूर होकर दूसरों को परछाई के समान तुच्छ समझता है। 692 ज्ञानार्णव में शुभचन्द्राचार्य का कथन है -"अभिमानी विनय का उल्लंघन करता है और स्वेच्छाचार में प्रवर्तन करता है।"693 योगशास्त्र में हेमचन्द्राचार्य ने कहा है 694 – “मान विनय, श्रुत और सदाचार का हनन करने वाला है, धर्म, अर्थ और काम का घातक है, विवेकरूपी चक्षु को नष्ट करने वाला है।" मान का मोटा अर्थ 'मैं' की भावना होना है। अहंकार से ही अभिमान, क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष, घृणा आदि मानसिक-दोष उत्पन्न होते हैं। अपने-आपको दूसरों से श्रेष्ठ समझना और स्वयं को अधिक महत्त्व देना अहंकार होता है। यह बुद्धि और विवेक को नष्ट करता है तथा अपने मुकाबले दूसरों को तुच्छ समझने की भावना पैदा करता है। अज्ञानी जीव के जब पुण्य का उदय होता है, तब अनुकूल 692 अण्णं जणं पस्सति बिंबभूयं – सूत्रकृतांगसूत्र, अ.13, गाथा 8 693 करोत्युद्धतधीर्मानाद्विनयाचारलघनम् –ज्ञानार्णव, सर्ग 19, गाथा 53 694 विनय-श्रुत-शीलानां त्रिवर्गस्य च घातकः । विवेक-लोचनं लुम्पन्, मानोऽन्धंकरणो नृणाम् ।। – योगशास्त्र- 4/12 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004097
Book TitleJain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages580
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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