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जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व
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उत्तम है।' इस कुलमद के परिणामस्वरूप मरीचि को महावीर के भव में बयासी दिनों तक देवानन्दा ब्राह्मणी की कुक्षि में रहना पड़ा। ..
(iii) रूपमद
शारीरिक-वैभव मिलना अलग बात है और उस रूप की चकाचौंध में अन्धा न बनना अलग बात है। देह का लावण्य-सौन्दर्य ब्रह्मात्मा को मदोन्मत्त बना देता है और उस रूप की रोशनी में उसे सब कुछ सामान्य/निम्न दिखाई देता है।
सनत्कुमार चक्रवर्ती के रूप की प्रशंसा इन्द्र ने जब सभा में की; तब दो देव रूप परिवर्तन कर धरा पर आए। सनत्कुमार स्नान हेतु समुपस्थित थे। आदेश प्राप्त कर ब्राह्मणद्वय सनत्कुमार की रूप-माधुरी का पान करके वाह-वाह कर इस प्रकार बोल उठे – “राजन! देवराज इन्द्र से जैसा श्रवण किया था, उससे कहीं अधिक सुंदर है आपका सौन्दर्य ।”
ब्राह्मणों के इस कथन पर सनतकुमार गर्वोन्मत्त हो उठे और बोले -“हे विप्रों! अभी क्या देखते हो ? जब वस्त्राभूषणों से सुसज्जित होकर सभा में हमारा आगमन हो, तब इन आँखों को खुली रखना। चक्रवर्ती रूपमद से छलछलाते जब राजसभा में प्रविष्ट हुए; तब दोनों ब्राह्मणों को देख गर्वभरी हंसी हंस पड़े - "कहो! आप मौन क्यों हैं ?" ब्राह्मणरूपधारी देवों के चेहरे पर उदासी छा गई और उन्होंने सनत्कुमार से कहा -"राजन! अब उस सुन्दरता में दीमक लग चुकी है। आपको विश्वास न हो, तो स्वर्णपात्र में थूककर देख लीजिए। कितने कीड़े कुलबुला रहे हैं ?" ऐसा सुनकर चक्रवर्ती देह-नश्वरता के चिन्तन में खो गए और वैराग्य के पथिक बने।
(iv) बलमद
1. प्रत्येक मनुष्य की अपनी-अपनी शारीरिक-संरचना होती है। किसी की देहं सुगठित, बलिष्ठ होती है, किसी की देह निर्बल। अपने शौर्य, पराक्रम का अहंकार करना बलमद है। इतिहास में अनेकों ऐसे व्यक्तियों के
674 श्री कल्पसूत्र, महावीर प्रभु के सत्ताइस भव
योगशास्त्र, 4/13 व्याख्या
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