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________________ जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व तट पर रहने वाले पक्षी अन्यत्र चले जाते हैं। भारी चीज कभी ऊपर नहीं उठती है, नीचे ही गिरती है। ऊँचा उठने के लिए अहंकार के भार को कम करके मन के भावों को हल्का बनाना आवश्यक है। मान के विभिन्न रूप मान जीवन को गहरे पतन - - गर्त में धकेलने वाली एक मनोवृत्ति है । इस जगत् में देखा जाए, तो एक से बढ़कर एक अभिमानी मिलते हैं । किसी को अपनी - जाति कुल का अभिमान है, तो किसी को अपने रूप पर गर्व है। कोई अपने धन-वैभव पर इतराता है, तो कोई अपनी तपस्या का घमण्ड करता है। किसी को अपनी उपलब्धियों पर मान है, किसी को अपने ज्ञान का गर्व है, तो किसी को अपनी बुद्धि का मद है। मान अनेक रूपों में प्रकट होता है। भगवतीसूत्र में मान के बारह रूपों की चर्चा की गई है, वहीं समवायांगसूत्र में ग्यारह नामों का उल्लेख है। इनमें पुर्नाम को छोड़कर सभी समान हैं 1. मान, 2. मद, 3. दर्प, 4. स्तम्भ, 5. गर्व, 6. आत्मोत्कर्ष, 7. परपरिवाद, 8 उत्कर्ष, 9. अपकर्ष, 10. उन्नतनाम, 11. उन्नत, 12. पुर्नाम । 666 श्री अभयदेवसूरि द्वारा भगवतीसूत्र के वृत्ति - अनुवाद में इन रूपों का अर्थ- निरूपण निम्न प्रकारेण किया गया है। - 665 666 667 668 - 667 1. मान जिस कर्म के उदय से मान-भाव उत्पन्न होता है, वह कर्म ही मान है। 07 अपने किसी गुण पर अहंवृत्ति करना, अथवा आत्मपूजा की आकांक्षा से उत्पन्न अहंकार मान है। 668 2. 2. मद शक्ति का अहंकार मद कहलाता है। - 669 670 स्थानांगसूत्र एवं समवायांगसूत्र में मद के आठ प्रकार बताए गए हैं- 1. जातिमद, 2. कुलमद, 3 रूपमद, 4. बलमद, 5. श्रुतमद, 6. तपमद, 7. लाभमद, 8. ऐश्वर्यमद । 671 321 Jain Education International माणे, मदे, दप्पे, शंभे, गव्वे, उत्तुक्कोसे, परपरिवाए, उक्कोसे, अवक्कोसे, उण्णते, उण्णामे, दुण्णामे - भगवतीसूत्र, श. 12, उ. 5, सूत्र 104 माणे, मदे, दप्पे, थंभे । - समवायांगसूत्र, 52, सूत्र 1 भगवतीसूत्र, श. 12, उ.5, सूत्र 3 की वृत्ति सर्वदात्मपूजाऽऽकांक्षित्वात् मानः । - तत्त्वार्थसूत्राधिगम भाष्यवृत्ति - 8 / 10 की टीका For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004097
Book TitleJain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages580
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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