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________________ 316 जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व कामनाओं की पूर्ति में बाधा उपस्थित होने पर स्वतः ही क्रोध का भाव आ ता है 47 दैहिक - स्तर पर विचार करें, तो क्रोध में रक्तचाप बढ़ जाता है, होंठ भींच जाते हैं और आँखें फटी की फटी रह जाती हैं । मनोवैज्ञानिक प्रो. गिरधारीलाल श्रीवास्तव 648 ने कहा है - "भय क्रोधावस्था में थायराइड ग्लैण्ड [गलग्रन्थि} समुचित कार्य नहीं करती, जिससे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।" स्वचालित तन्त्रिका - तन्त्र का अनुकम्पी - तन्त्र क्रोधावेश में हृदयगति, रक्त-प्रवाह तथा नाड़ी की गति बढ़ा देता है, जिससे पाचन-क्रिया में विघ्न आता है, रुधिर का दबाव बढ़ता है तथा एड्रिनल ग्लैण्ड (अधिवृक्क ग्रंथि] उत्तेजित होती है | 949 ,649 क्रोध और आक्रामकता का संवेग जब प्रदीप्त होता है, तब शरीर की ऊर्जा नष्ट होती है, शरीर का हास होता है, बल क्षीण होता है। मनोविज्ञान की मान्यता है- तीन मिनट किया गया तीव्र क्रोध और आक्रामकता की अवस्था नौ घंटे कठोर परिश्रम करने जितनी शक्ति को समाप्त कर देता है 1 दैहिक - हास के साथ-साथ जब क्रोध - संवेग के साथ आक्रामकता की वृत्ति जुड़ जाती है, तो व्यक्ति प्रतिपक्षी के अहित के लिए भी तत्पर हो जाता है और उसे शक्तिहीन बनाने का प्रयास करता है। क्रोध में जहाँ स्वयं के प्रति संरक्षणात्मक - वृत्ति होती है, वहीं दूसरों को अहित या चोट पैदा करने का भाव बन जाता है। इस प्रकार, हम देखते हैं कि मनोवैज्ञानिक–दृष्टि से क्रोध - संवेग और आक्रामकता की मूलवृत्ति एकदूसरे से जुड़ी हुई है। क्रोध जैसे-जैसे स्थाई रूप लेता है, आक्रामकता की वृत्ति भी सबल होती जाती है। क्रोध में व्यक्ति दूसरे का अहित करने के साथ-साथ अपना भी अहित कर लेता है, अपनी आत्मशक्ति को खो देता है, अतः विभिन्न धर्म-परम्पराओं में क्रोध से बचने का निर्देश दिया गया है, इसीलिए आध्यात्मिक - लोगों में क्रोध पर विजय पाने के लिए क्षमारूपी शस्त्र को अपनाने की बात कही गई है। गीता में एक प्रश्न पूछा गया था 647 ध्यायतो विषयान्पुंस संगस्तेषूपजायते । 648 649 संगात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते । । - Jain Education International गीता - 2/62 शिक्षा मनोविज्ञान, प्रो. गिरधारीलाल श्रीवास्तव, पृ. 181 सामान्य मनोविज्ञान की रूपरेखा, डॉ. रामनाथ शर्मा, पृ. 420-421 For Personal & Private Use Only " www.jainelibrary.org
SR No.004097
Book TitleJain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages580
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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