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जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व
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-"व्यक्ति पाप-प्रवृत्ति कैसे करता है ? उत्तर में कहा गया – "काम, क्रोध ही ऐसे तत्त्व हैं, जो व्यक्ति को पाप- प्रवृत्ति में डालते हैं। 650
__ सारांशतः, जैनदर्शन का कहना है कि क्रोध-संज्ञा एक कषाय है, वह आत्मा को पतन के गर्त में डालता है, उससे बचने का प्रयास करना चाहिए।
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650 अथ केन प्रयुक्तीडयं पापं चरति पुरूषः ...
काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः | - गीता 3/36-37
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