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जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व
क्षमा ही क्रोधाग्नि को शान्त कर सकती है। क्षमा संयमरूपी उद्यान को हरा-भरा बनाने के लिए क्यारी है।"645
इसके अलावा क्रोध - विजय के कुछ अन्य संक्षिप्त सूत्र इस प्रकार
1. क्रोध का निमित्त मिले, तब मौन हो जाएं, या सौ से उलटी गिनती पढ़ना प्रारम्भ कर दें ।
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2. क्रोध की अवस्था में एक बार अपना चेहरा दर्पण में देख लें, तो आप क्रोध करना भूल जाएंगे।
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3. क्रोध में एक गिलास ठंडा पानी पी लें और उसे थोड़े समय मुख में ही रखें।
क्रोध-प्रसंग मिलने पर क्रोध - विजय, क्रोध - शमन, क्रोध - नियंत्रण और क्रोध–विफल करने की दिशा में उपर्युक्त सूत्रों में से कोई भी सूत्र का सही समय पर सही उपयोग किया जाए, तो सफलता अवश्य मिलेगी, क्योंकि क्रोध को उत्पन्न करना जितना सरल है, उसे समेटना उतना ही कठिन है। हर पाप का हर अपराध का श्रीगणेश क्रोध से ही होता है, क्रोध की खुराक विवेक है। विवेक के अभाव में ही क्रोध अपना साम्राज्य स्थापित करता है। यदि क्रोध पर क्षमा का अंकुश और जाग्रति की लगाम रहे, तो क्रोध कभी भी अहितकर नहीं होगा ।
4. क्रोध में सामने वाला अगर अग्नि हो रहा हो, तो आप पानी बन जाएं। उत्तराध्ययन में कहा है अपने-आप पर भी कभी क्रोध मत करो 1646
आधुनिक मनोविज्ञान में क्रोध - संवेग (Emotion } और आक्रामकता की मूलवृत्ति
आधुनिक मनोविज्ञान में क्रोध को एक संवेग और आक्रामकता को एक मूलप्रवृत्ति माना गया है। वस्तुतः, क्रोध का जन्म तब होता है, जब
क्रोधवह्नेस्तदह्नाय शमनाय शुभात्सभिः । श्रयणीया क्षमैकैव संयमारामसारणिः ।। उत्तराध्ययनसूत्र - 29 / 40
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योगशास्त्र
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