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________________ 310 जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व आ रहा है, तो फिर क्रोध आ ही नहीं सकता। क्रोध को बजाय दबाने के, उसे देखने और जानने का प्रयास करें। क्रोध एक प्रकार की बेहोशी है। बेहोशी में देख पाना कुछ कठिन-सा अवश्य है, लेकिन असंभव नहीं है। साधना से सब कुछ संभव है। साधना की जरुरत है। चिन्तन-प्रक्रिया से चित्त को चैतन्य बनाया जा सकता है। चैतन्य मनःस्थति क्रोध की उपस्थिति में संभव नहीं। प्रशंसा के दो शब्द सुनकर व्यक्ति प्रसन्न हो जाता है और निंदा सुनकर दुःखी और उद्वेलित हो जाता है। स्वाभाविक है कि जिसे प्रशंसा प्रभावित कर सकती है, उसे निंदा भी प्रभावित करेगी। शब्दरूपेण ये पुद्गल-द्रव्य हैं, जो मेरे (निज आत्मा) के नहीं हो सकते- इस प्रकार का चिन्तन भी क्रोध पर विजय प्राप्त करा सकता है, अर्थात् कोई अपशब्द भी कहे, तो अपने स्वभाव में रमण कर क्रोधित न हों, क्योंकि शब्द भी पुदगल हैं। 5. क्षमा मांगना क्रोध को शान्त और हृदय को जल की तरह शीतल बना देता है। अगर किसी कारणवश कभी झगड़ा भी हो जाए, तो केवल विचारों के पारस्परिक-टकराव से ही क्रोध उत्पन्न होता है और फिर वह विकराल रूप ले लेता है, जीवन को प्रभावित भी करता है, इसलिए ऐसी स्थिति में क्षमा या सॉरी कहते हैं, तो स्थिति तुरंत शांत हो जाती है। छोटी-सी बात को झगड़े का रूप कभी न दें, क्योंकि कोई भी झगड़ा चिंगारी के रूप में शुरु होता है और दावानल बनकर समाप्त होता है। क्रोध को जीतने का मुख्य उपाय क्षमाभाव है। 6. क्रोध-विजय किसी जप के आलम्बन से भी संभव है। मंत्र को श्वासोच्छवास के साथ जोड़ा जा सकता है। व्यर्थ के विचारों से हटकर अन्तर्मुखी बनने की यह एक सरल प्रक्रिया है। अभ्यास-वृद्धि के साथ-साथ कल्पना के अन्तश्चक्षुओं के समक्ष मंत्राक्षरों को देखने का प्रयत्न करने से क्रोध, ईर्ष्या, आलोचना आदि दुष्प्रवृत्तियाँ क्षीण हो जाती हैं। 7. नाद-श्रवण में चित्त लीन होने पर सहज शान्ति का अनुभव होता है। जप में बाह्य-ध्वनि एवं नाद से अन्तर्ध्वनि का अवलम्बन लिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004097
Book TitleJain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages580
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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