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जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व
एक-दूसरे को अपशब्द बोलीं, मामला बिगड़ गया। एक स्त्री अपने पूरे शरीर पर घासलेट डालकर और स्वयं को आग लगाकर आ गई और स्वयं जलती हुई उस दूसरी स्त्री से लिपट गई तथा कहने लगी- "मैं तो जल ही रही हूं, लेकिन तुझे भी जलाकर जाऊँगी।" दूसरी स्त्री ने छूटने का बहुत प्रयास किया, अंततः दोनों जलकर खाक हो गयीं। 29 वर्त्तमान में क्रोध और तद्जन्य द्वेष के कारण राष्ट्रों में युद्ध और हमले हो रहे हैं। विभिन्न समुदायों के लोग छोटे-छोटे मामलों में भड़क उठते हैं और क्रोधातुर होकर हिंसा का ताण्डव समाज में फैलाते हैं ।
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3. क्रोध व्यक्ति के शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक-शान्ति को भंग करता है
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तीव्र क्रोध स्वास्थ्य के लिए अहितकर है। क्रोध से यकृत, तिल्ली और गुर्दे विकृत होते हैं, रक्तचाप बढ़ता है, आँतों में घाव होते हैं, पाचक रस अल्पमात्रा में बनता है। अमेरिका की 'लाइफ मेग्जीन में एक सचित्र लेख था कि हृदय विकार (हार्ट ट्रबल), पेट सम्बन्धी रोग (स्टमक ट्रबल), ब्लडप्रेशर, अल्सर आदि रोगों का कारण क्रोध या आवेश है। 631 तीव्र आवेश से हृदय, फेफड़े, मस्तिष्क, स्नायु आदि के कार्यों में तीव्रता आती है। रक्त मस्तिष्क में अधिक मात्रा में प्रवाहित हो जाता है, साथ ही खून में विकार उत्पन्न होने लगते हैं, इसलिए क्रोधित महिला कभी शिशु को स्तनपान न कराए। क्रोध के कारण नाड़ी फट जाने से कई बार मनुष्य की मृत्यु हो जाती है। क्रोध के कारण मानसिक-शान्ति का हास होता है ।
4. क्रोध से सम्यक्त्व - गुण का नाश
शास्त्रकार कहते हैं कि एक ही क्षण का क्रोध करोड़ों वर्षों के संयम और तप की साधना को निष्फल बना देता है। कपास के गोदाम में आग की एक चिंगारी काफी है, वैसे ही वर्षों की साधना को जलाने के लिए क्रोध की एक चिंगारी काफी है। क्रोध का आवेश एक वर्ष से ज्यादा स्थित रहे, तो वह अनंतानुबंधी - क्रोध बन जाता है 632 और आत्मा को
629 दीप बुझा ज्योति जलाकर सा. सुयशेन्द्राश्री जी, पृ. 83 शारीरिक मनोविज्ञान, ओझा एवं भार्गव, पृ. 214
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सामान्य मनोविज्ञान की रूपरेखा, पृ. 420-421
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प्रथम कर्मग्रंथ, गाथा, 18
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