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________________ 290 जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व उन्होंने अपने शान्त स्वभाव को नहीं छोड़ा, सदैव करुणा और क्षमा भावों में रमण किया। भारतीय मनोविज्ञान में क्रोध को संवेग Emotion} कहा गया है। संवेग शब्द का अर्थ है - उत्तेजित करना To Excite} | इस शाब्दिक अर्थ को ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि संवेग व्यक्ति की उत्तेजित अवस्था का ही दूसरा नाम है। इसी अर्थ में मनोवैज्ञानिक गेल्डार्ड' {Geldard, 1963} ने कहा है – “संवेग क्रियाओं का उत्तेजक है।" या "संवेग एक जटिल भाव की अवस्था होती है, जिसमें कुछ खास-खास शारीरिक एवं ग्रन्थीय-क्रियाएं होती हैं।" 572 क्रोध {Angry), भय Fear}, खुशी {Happiness} हमारे जीवन के प्रमुख संवेगों में से हैं।573 __ आधुनिक मनोविज्ञान की दृष्टि में संवेग उत्पन्न होने की स्थिति में अनेक शारीरिक-परिवर्तन घटित होते हैं। भय, क्रोधावस्था में थाइराइड ग्लैण्ड गवग्रन्थि) समुचित कार्य नहीं करती, जिससे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।574 स्वचालित तन्त्रिका-तन्त्र' का अनुकम्पी-तन्त्र क्रोधावेश में हृदयगति, रक्त-प्रवाह तथा नाड़ी की गति बढ़ा देता है। पाचक-क्रिया में विघ्न आता है, रुधिर का दबाव बढ़ता है तथा एड्रीनल ग्लैण्ड (अधिवृक्क ग्रंथि) को उत्तेजित करता है।575 क्रोध के प्रदीप्त होने पर शक्ति का हास होता है, ऊर्जा नष्ट होती है, बल क्षीण होता है। मनोविज्ञान की मान्यता है -तीन मिनट किया गया तीव्र क्रोध नौ घंटे कठिन परिश्रम करने जितनी शक्ति को समाप्त कर देता है। जैसे दिन भर चलने वाली हवा से घर में उतनी मिट्टी नहीं आती, जितनी धूल पांच मिनट की आँधी में आ जाती है, वैसे ही पूरे दिन भर की भावदशा में इतने कर्म-परमाणु आत्मा में नहीं आते, जितने पांच मिनट के क्रोध में आ जाते हैं। 371 Emotions are inciters to action" - Geldard : Fundamentals of psychology, 1963, P.33 372 "Emotion is a complete feeling state accompanied by characteristic motor or glandular activities." - English & English : A comprehensive dictionary Psychological and psychoanalytic terms, 1958, P. 176 573 आधुनिक सामान्य मनोविज्ञान, अरूणकुमार सिंह, आशीषकुमार सिंह, पृ. 413 574 शारीरिक-मनोविज्ञान, ओझा एवं भार्गव, पृ. 214 575 सामान्य मनोविज्ञान की रूपरेखा, डॉ. रामनाथ शर्मा, पृ. 420-421 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004097
Book TitleJain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages580
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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