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________________ 274 519 के आधार पर किया जाता है, अतः ट्रस्टीशिप के विचार का प्रचार ही सामाजिक आर्थिक विषमता को दूर कर सकता है। गांधीजी यह मानते हैं कि बिना हृदय - परिवर्तन और विचार- परिवर्तन के कानून के द्वारा भी सच्चा समाजवाद नहीं ला सकते हैं, अतः सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण बात ट्रस्टीशिप के पक्ष में जनमत तैयार करने की है। ट्रस्टीशिप - सिद्धान्त के माध्यम से गांधीजी समाज को एक परिवार के रूप में देखते हैं। परिवार में हर व्यक्ति की क्षमता एक समान नहीं रहती, अतः हर व्यक्ति एक समान उत्पादन नहीं कर सकता, परन्तु जो कुछ वह उत्पादन करता है, उसका एक ही मालिक उस परिवार का मुखिया है, जो उस संपत्ति का उपयोग समस्त परिवार के लिए करता है । ठीक उसी प्रकार, समाज में भी शक्ति की विषमता के कारण उत्पादन की विषमता होगी, इसलिए व्यक्ति को अपनी शक्ति तथा मेघा के अनुकूल करोड़ों के उपार्जन का अधिकार है, पर स्वामित्व समाज का रहेगा । समता IT अर्थ अधिक-से-अधिक समानता है, इसीलिए गांधी निम्नतम पारिश्रमिक और उच्चतम आय को निर्धारित करना चाहते थे तथा समय-समय पर उसे बदलकर धीरे-धीरे विषमता कम करना चाहते थे। 20 विनोबा के अनुसार, ट्रस्टीशिप - सिद्धांत का अभिप्राय है शरीर, बुद्धि और संपत्ति- तीनों में से जो भी प्राप्त हो, उसे सबके हित में लगाना । 521 किसी भी परिस्थिति में यह अपरिग्रह का उत्तम उपाय है। 522 जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व ट्रस्टीशिप के सिद्धान्त के पीछे जो अमूर्च्छा या अनासक्ति का बीजमंत्र है, वह जैनाचार - दर्शन और गीता में पहले से ही मौजूद था। जैनदर्शन ने परिग्रह की परिभाषा करते हुए यही कहा था कि वास्तविक परिग्रह तो मूर्च्छा या आसक्ति है। 23 गांधीवाद की दृष्टि में अपरिग्रह का अर्थ यह नहीं है कि बस हमारे लिए जितना आवश्यक है, मात्र उतना ही संग्रह करेंगे। आवश्यकता की कोई सीमा नहीं है, इसलिए आवश्यकता के 519 Pyarelal, Towards New Horizons, PP 90-91 520 Harijan, 25/10/52, P. 301 521 सर्वोदय और स्वराज्य शास्त्र, भावे विनोबा, पृ. 134 522 वही, पृ. 133 523 आचारांगसूत्र- 6/21 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004097
Book TitleJain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages580
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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