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________________ जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व 251 ही परिग्रह के भेद भी अगणित हो सकते हैं, पर संक्षेप में आचार्य हरिभद्र71 ने नौ भेदों का वर्णन किया है। बृहत्कल्पभाष्य में जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण72 ने बाह्य परिग्रह के दस भेद बताए हैं। आचार्य हरिभद्र द्वारा वर्णित नौ भेद क्रमशः इस प्रकार हैं - 1. क्षेत्र - खेत या भूमि आदि। 2. वास्तु - रहने के लिए मकान, दुकान आदि। 3. हिरण्य - चांदी के सिक्के, आभूषण आदि । 4. स्वर्ण - स्वर्ण और स्वर्ण के आभूषण आदि। 5. धन - हीरे, पन्ने, माणक, मोती, जवाहरात आदि। 6. धान्य – गेहूँ, चावल, मूंग, मोठ आदि। 7. द्विपद - नौकर-नौकरानी, दास-दासी आदि। बहुत-से लोग तोता, मैना, कबूतर, मोर आदि पक्षी भी पाल लेते हैं। दो पैर वाले होने से इनकी गणना भी परिग्रह के इसी भेद में होती है। 8. चतुष्पद - गाय, भैंस, आदि चार पैर वाले पशु । 9. कुप्य - वस्त्र, पलंग और अन्य विविध प्रकार की धातुओं का सामान आदि। जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण के अनुसार दस भेद इस प्रकार हैं- क्षेत्र, वस्तु, धन, धान्य, संचय (तृण, काष्ठ आदि का) मित्रज्ञातिसंयोग (परिवार), यान (वाहन), शयनासन (पलंग, पीठ आदि), दास-दासी और कुप्य । कहीं-कहीं द्विपद-चतुष्पद को एक गिनकर दास-दासी को पृथक किया है और कहीं-कहीं धातु -चांदी, तांबा, पीतल, लोहा आदि को पृथक्-पृथक् भी गिन लिया गया है। यह स्पष्ट है कि परिग्रह के कई आयाम हैं। 473 यह 'जड़' या 'चेतन' हो सकता है। जीव का परिग्रह चेतन-परिग्रह है, जबकि अजीव का 47] आवश्यक हरिभद्रीयवृत्ति, अ. 6 472 (क) खेत्तं वत्थु धण–धन्न संचओ मित्तणाई संजोगे। जाण-सयणासणाणि य, दासी-दास च कुव्वयं च।। -- बृहत्कल्पभाष्य - 825 __(ख) वंदितुसूत्र, गाथा-18 473 देखें, द कन्सैप्ट ऑफ पंचशील (उपर्युक्त), डॉ. कमल जैन, पृ. 224-225 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004097
Book TitleJain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages580
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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