________________
224
जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व
10. अशुभ वातावरण से दूर रहें -
नाटक, नृत्य, सिनेमा, टीवी, वीडियो तथा अश्लील साहित्य आदि से एकदम बचकर रहें। चूंकि ये विषय-वासनाओं को बढ़ाने का काम करते हैं, इसलिए वासनाओं को जाग्रत करने वाले निमित्तों का भी त्याग करना चाहिए।
11. शारीरिक श्रृंगार न करें -
ब्रह्मचारी का जीवन अत्यन्त सादगीपूर्ण होना चाहिए। तेल, इत्र, . आदि सौंदर्य प्रसाधनों के प्रयोग से काम-विकार उत्तेजित हो जाते हैं, अतः ब्रह्मचर्य के साधक को शरीर का श्रृंगार, भड़कीले अश्लील वस्त्र, वर्तमान युग में प्रचलित उपभोग की वस्तुएं, जैसे - फोन, मोबाईल, कम्प्यूटर, नेट, टीवी, संगीत आदि का त्याग करना चाहिए।
• 12. शयनगृह -
ब्रह्मचारी को स्त्री आदि से रहित स्वतंत्र शयनगृह में सोना चाहिए। सोने के लिए बिस्तर अत्यन्त कोमल व मुलायम नहीं होना चाहिए। . शयनकक्ष में महापुरुषों के चित्र अंकित होना चाहिए, ताकि उन्हें देखकर मन में ही शुभ भाव पैदा हो सकें।
13. एकांत का त्याग -
अपेक्षा से एकान्त लाभकर भी है और हानिकर भी। राम और रमा -दोनों का ध्यान एकान्त में ही होता है। एकान्त में ही कान्त की प्राप्ति होती है। राम और काम- दोनों से मिलन एकान्त में ही होता है। इन सब बातों से स्पष्ट है कि जिसका मन स्वाधीन है, ऐसे साधक के लिए एकान्त लाभकारी है और जिसका मन पराधीन है, ऐसे व्यक्ति को एकान्त मिलने पर उसका मन कुविचार में भटक जाता है। ऐसे व्यक्ति को ज्येष्ठ पुरुषों के सान्निध्य में ही रहना चाहिए। माता-पिता व गुर्वादि के सान्निध्य में रहने से अशुभ विचारों से पूर्णतया बचा जा सकता है।
लज्जा–गुण के कारण या दूसरे व्यक्ति की उपस्थिति भी व्यक्ति को पाप करने से बचा देती है, क्योंकि दूसरों की उपस्थिति में पाप का
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org