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________________ जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व कामवासना का दमन और निरसनब्रह्मचर्य की नौ वाड़ों (सुरक्षा चक्र) के माध्यम से - ब्रह्मचर्य की साधना वासनाओं के निरसन की साधना है । मानव एकान्त - शान्त स्थान पर बैठकर उग्र- -से-उग्र तप की साधना कर सकता है, पर जिस समय उसके अर्न्तमानस में वासना का भयंकर तूफान उठता है, उस समय वह अपने-आपको नियंत्रित नहीं रख पाता, अतः कामवासनाओं के निरसन और ब्रह्मचर्य की सुरक्षा के लिए सतत जागरूकता अपेक्षित है। साधक को कामवासनाओं के निरसन के लिए अपना जीवन पूर्ण सादगीमय बनाना होता है। कामोत्तेजक मोहपूर्ण वातावरण से अपने-आपको मुक्त करना होता है, अतः आचारांगसूत्र प्रश्नव्याकरणसूत्र आचारांगचूर्णि आवश्यकचूर्णि तत्त्वार्थसूत्र की टीकाओं, सर्वार्थसिद्धि 369 एवं राजवार्त्तिक 370 में ब्रह्मचर्य की पाँच भावनाओं का उल्लेख है । यद्यपि इन सबमें क्रम में या नामों में कुछ अन्तर है, परन्तु भाव सभी का समान है। 364 366 367 समवायांग 365 1 आचारांगसूत्र के अनुसार पाँच भावनाएँ इस प्रकार हैं , 364 आचारांगसूत्र - 2, 786-787 365 समवायांग, सम. 25 366 प्रश्नव्याकरणसूत्र 367 आचारांगचूर्णि, मूल पाठ टिप्पण, पृ. 280 368 आवश्यकचूर्णि, प्रतिक्रमण अध्ययन, पृ. 143-147 369 तत्त्वार्थसूत्र, सर्वार्थसिद्धि- 7–7 370 तत्त्वार्थराजवार्त्तिक 7–7, पृ. 536 205 - 1. निर्ग्रथ श्रमण पुनः - पुनः स्त्रियों की कामजनक कथा न करे, क्योंकि उनकी कथा करने से सच्चारित्र और ब्रह्मचर्य का भंग तथा केवली - प्ररूपित धर्म से भ्रष्ट होने की आशंका रहती है। Jain Education International 2. स्त्रियों के मनोहर और मनोरम अंगों का कामरागपूर्वक सामान्य या विशेष रूप से अवलोकन न करे, उससे भी ब्रह्मचर्य का भंग होता है । For Personal & Private Use Only 368 3. निर्ग्रथ श्रमण स्त्रियों के साथ की हुई पूर्वरति या पूर्वक्रीड़ा का स्मरण न करे । , www.jainelibrary.org
SR No.004097
Book TitleJain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages580
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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