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________________ 194 ___ जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व 26. मुनियों में जैसे तीर्थंकर उत्तम हैं, उसी प्रकार व्रतों में ब्रह्मचर्य-व्रत उत्तम है। 27. क्षेत्रों में महाविदेहक्षेत्र की तरह ही व्रतों में ब्रह्मचर्य उत्तम है। 28. पर्वतों में गिरिराज सुमेरु की भांति व्रतों में ब्रह्मचर्य सर्वोत्तम व्रत 29. जैसे समस्त वनों में नन्दन-वन प्रधान है, उसी प्रकार समस्त व्रतों ___ में ब्रह्मचर्य प्रधान है। 30. जैसे समस्त. वृक्षों में सुदर्शन जम्बू–वृक्ष प्रधान है, उसी प्रकार . समस्त व्रतों में ब्रह्मचर्य प्रधान है। 31. जैसे अश्वाधिपति, गजाधिपति और स्थाधिपति राजा विख्यात होता है, उसी प्रकार व्रताधिपति ब्रह्मचर्य विख्यात है। 32. जैसे रथिकों में महारथी राजा श्रेष्ठ होता है, उसी प्रकार समस्त व्रतों में ब्रह्मचर्य-व्रत सर्वश्रेष्ठ है। इस प्रकार, एक ब्रह्मचर्य की आराधना करने पर अनेक गुण स्वतः ही प्राप्त हो जाते हैं। ब्रह्मचर्य के प्रभाव से इहलोक और परलोक-सम्बन्धी यश और कीर्ति प्राप्त होती है, अतएव एकाग्र-स्थिर चित्त से तीन करण और तीन योग से विशुद्ध सर्वथा निर्दोष ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। प्राचीन साहित्य का अनुशीलन व परिशीलन करने पर यह ज्ञात होता है कि 'ब्रह्म' शब्द के मुख्य रूप से तीन अर्थ हैं - 'ब्रह्म' वीर्य है। 'ब्रह्म' आत्मा है। 'ब्रह्म विद्या है। 'चर्य' शब्द के भी तीन अर्थ हैं – रक्षण, रमण और अध्ययन। इस प्रकार, ब्रह्मचर्य के तीन अर्थ हुए - 1. वीर्यरक्षण, 2. आत्मरमण और 3. विद्याध्ययन। वीर्यरक्षण अर्थ तो प्रायः प्रसिद्ध है, किन्तु इसके आगे के दो अर्थ भी मननीय हैं। आत्मस्वरूप में लीन होना और सतत ज्ञानार्जन करते रहना- ये ब्रह्मचर्य की साधना को सम्पूर्णता प्रदान करते हैं। इस प्रकार, ब्रह्मचर्य का अर्थ हुआ- विकारों का उपशमन कर ज्ञानपूर्वक आत्मा में रमण करना। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004097
Book TitleJain Darshan me Vyavahar ke Prerak Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramuditashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2013
Total Pages580
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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