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जैनदर्शन में व्यवहार के प्रेरकतत्त्व
9. जैसे नदियों में शीतोदा नदी प्रधान है, वैसे ही सब व्रतों में ब्रह्मचर्य प्रधान है।
10. समस्त समुद्रों में स्वयंभूरमण समुद्र जैसे महान् है, उसी प्रकार व्रतों में ब्रह्मचर्य महान् है ।
11. जैसे गोलाकार ( माण्डलिक) पर्वतों में रुचकवर (तेरहवें द्वीप में स्थित) पर्वत प्रधान है, उसी प्रकार सब व्रतों में ब्रह्मचर्य प्रधान है। 12. इन्द्रों का ऐरावण नामक गजराज जैसे सर्व गजराजों में श्रेष्ठ है, उसी प्रकार ब्रह्मचर्य भी सभी व्रतों में श्रेष्ठ है ।
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13. ब्रह्मचर्य वन्य- जन्तुओं में सिंह के समान प्रधान है।
14. सुपर्णकुमार देवों में वेणुदेव के समान सब व्रतों में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ है। 15. जैसे नागकुमार जाति के देवों में धरणेन्द्र प्रधान है, उसी प्रकार सर्व व्रतों में ब्रह्मचर्य प्रधान है।
16. ब्रह्मचर्य कल्पों में ब्रह्मलोक कल्प के समान उत्तम है, क्योंकि ब्रह्मलोक का क्षेत्र महान् है और वहाँ का इन्द्र अत्यन्त शुभ परिणाम वाला होता है ।
17. जैसे उत्पाद - सभा, अभिषेक - सभा, अलंकार - सभा, व्यवसाय - सभा आदि सभाओं में सुधर्म - सभा श्रेष्ठ है, उसी प्रकार व्रतों में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ है।
18. जैसे स्थितियों में लवसप्तमा अर्थात् अनुत्तरविमानवासी देवों की स्थिति प्रधान है, उसी प्रकार व्रतों में ब्रह्मचर्य प्रधान है ।
19. सब दानों में अभयदान के समान ब्रह्मचर्य सब व्रतों में श्रेष्ठ हैं 20. ब्रह्मचर्य सब प्रकार के कम्बलों में रत्नकम्बल ( कृमिरागरक्त) के समान श्रेष्ठ है।
21. संहननों में वज्रऋषभनाराच संहनन के समान ब्रह्मचर्य सर्वश्रेष्ठ है 22. संस्थानों में समचतुरस्र - संस्थान के समान ब्रह्मचर्य सर्वश्रेष्ठ है। 23. जैसे ध्यानों में शुक्लध्यान सर्वप्रधान है, उसी प्रकार व्रतों में ब्रह्मचर्य - श्रेष्ठ है।
24. समस्त ज्ञानों में जैसे केवलज्ञान श्रेष्ठ है, वैसे ही व्रतों में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ है।
25. समस्त लेश्याओं में शुक्ललेश्या के समान व्रतों में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ है।
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